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पं० हेमराज
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तुम जस जपत जन छिन मांहि, जनम जनम के पाप नसा हिं । ज्यौं रवि उगे फटै ततकाल, अलिवत नील निशातम जाल ।
गुरुपूजा- इसमें अष्ट द्रव्यपूजा और जयमाल है । यह पंडित पन्नालाल बाकलीवाल द्वारा संपादित वृहज्जिन वाणी संग्रह में संकलित है । पंचपरमेष्ठी की पूजा में कवि ने लिखा है
एक दया पालें मुनि राजा, रागद्वेष है हरनपरं, तीनों लोक प्रगट सब देखें, चारों आराधन निकरं । पंच महाव्रत दुद्धर धारें, छहों दरब जानें सुहितं, सात भंगवानी मन लावैं, पावैं आठ ऋद्धि उचितं ।
नेमि राजमती जखड़ी का अंतिम भाग इस प्रकार हैतीस दिन अरु, निराधार जी । हेम भणे जीन जानिये । ते पावे भव पार जी ।
आपने रोहिणी व्रतकथा भी लिखी है ।
द्रव्यसंग्रह भाषा का रचनाकाल सं० १७१९ बताया गया है ।
नयचक्ररास नहीं बल्कि हिन्दी गद्य में लिखित वचनिका है । इसका रचनाकाल सं० १७२६ फाल्गुन शुक्ल १० बताया गया है, यथासतरह से छवीस को संवत फागुण मास, उजली तिथि दसमी जहां, कीनो वचन विलास । हेमराज की वीनति सुनियो सुकवि सुजांन, यह भाषा नयचक्र की रची सुबुद्धि उनमांन । यह वचनिका पं० नरायणदास के उपदेश से कवि ने पूर्ण की थी । ' इति श्री नयचक्र की पं० नारायणदास उपदेशेन शिष्य हेमराज कृत सामान्य वचनिका संपूर्ण ।'
afa बुलाकीदास ने पाण्डव पुराण (वि० सं० १७५४ ) में लिखा है कि उनकी माता जैनी (जैनुलदे) पाण्डे हेमराज की पुत्री थी । हेमराज
१. प्रेमसागर जैन - हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, पृ० २१४-२१९ । २. कस्तूरचन्द कासलीवाल - जैनशास्त्रभंडार की ग्रंथसूची, भाग ४ ।
३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० ३६८-३६९
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२, पृ० १९५६
( न० सं० ) और वही भाग २, पृ० २४६ तथा भाग
( प्र०सं० ) ।
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