Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 569
________________ ५५२ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जी का गोत्र गर्ग और जाति अग्रवाल था । इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि पाण्डे हेमराज का संपूर्ण परिवार जैन सिद्धांतों और जैन नियमों का निष्ठापूर्वक पालन करने वाला था तथा स्वयं पाण्डे हेमराज जैन विद्या के पारंगत पंडित थे। उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का भाषानुवाद प्रस्तुत करके जैन विद्या की अच्छी श्रीवद्धि की थी। हेमसार-आपकी दो छोटी रचनायें प्राप्त हैं एक पंच परमेष्ठि नवकार सार बेलि और दूसरी सप्तव्यसन बेलि। दोनों नौ कडी की लघु कृतियाँ हैं । इनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। पंच परमेष्ठि नवकारसार बेलि का प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है सरसति सति रति बोलडा आवहि तिम करि माइं, जिम गावउ गुरुणा वेलडी, सामिणी तुज्झ पसाइं । परमक्षर ओ परमगुरु, ओ परममंत्र दातार, मनि तनि वचनि जपउ भो भवीया, इम बोलइ हेमसार । मनिहि न मेहलीइ। नवकारमंत्र के माहात्म्य के बारे में कवि ने लिखा हैपरम मंत परमक्षर त्रिभुवनि महिमा गुरु नवकारु, मनिहि न मेहलियउ। सप्तव्यसन बेलि का आदि-अंत इस प्रकार है :आदि-अरिहंत देव सुसाधु सावय फुलि निज धम्म, पामी पुण्य पसाउलइं हारिम मानुस जम्म । अंत-वसण फलाफलु जाणि करिम करहु अनु मिच्छतु, भविय हु फजि पालीयइ जिनभावित समकितु हेमसार भणइ अ परमक्षर अ परमारथ तत्व हिय ।' हेमसागर-आप आंचलगच्छीय कल्याणसागर सूरि के शिष्य थे। आपकी रचना 'छंदमालिका' सूरत के समीप हंसपुर में रचित प्राप्त है। इसमें गुजराती प्रयोगों की अधिकता से अनुमान होता है कि आप १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ४२० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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