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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास हंसरत्न गद्य और पद्य दोनों विधाओं में मरुगुर्जर के सक्षम रचनाकार थे। आपकी गद्य रचना का नमूना नहीं प्राप्त हो सका।'
हंसराज ---आप खरतरगच्छ के जिनराज के प्रशिष्य एवं वर्धमान सूरि के शिष्य थे। आपने 'द्रब्यसंग्रह बालावबोध' की रचना सं० १७०९ से पूर्व की। यह दिगंबर कवि नेमिचंद्र कृत प्राकृत की 'द्रव्यसंग्रह' नामक मूल रचना पर बालावबोध है।
द्रव्यसंग्रह शास्त्रस्य बालबोधो यथामतिः हंसराजेन मुनिना परोपकृतये कृतः पौर्वापर्यविरुद्धं यल्लिखितं मयका भवेत, विशोध्यं धीमता सर्व तदाधाय कृपां मयि । खरतरगच्छ नभो गण तरणीनां वर्द्धमान सूरीणां; राज्ये विजयतितिष्टा नीतोय सहसि मासेव ।
आपने पद्य में 'ज्ञान द्विपंचाशिका अथवा ज्ञान बावनी (५२ कड़ी) हिन्दी में लिखी। इसका प्रथम छंद
ऊंकार रूप ध्येय गेय है न जाते, पर परतत मत छहं मांहि गायो है। जाको भेद पावै स्यादवादी वादी और कहो, जाने माने जाते आपा पर उरझायो है। दरब तै सरबस एक है अनेक तो भी, परजै प्रवान परि परि ठहरायो है। असो जिनराय राजा राज जाके पाय पूज,
परम पुनीत हंसराज मन भायो है। इसका अन्तिम छंद निम्नांकित है
शान को निधान सुविधान सूरि वर्धमान, भान सो विराजमान सरि रवपाट ज्यं । परम प्रवीन-मीनकेतन नवीन जग, साधु गुनधारी अपहारी कलि काट ज्यूं। ताको सुप्रसाद पाय हंसराज उवझाय, बावन कवित्त मनि पोये गुन पाट ज्यूं ।
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