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हंसराज
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.अरथ विचार सार जाको बुध अवधारि,
___ डोले न संसार खोलै करम कपाट ज्यूं ।' इस रचना की प्रति राजकोट के मोटा संघ के अपासरा ज्ञान भंडार में सुरक्षित है। इस रचना द्वारा यह प्रमाणित हो गया कि हंसराज मरु गुर्जर और निर्मल हिन्दी दोनों भाषा शैलियों के साथ ही गद्य और पद्य दोनों साहित्यिक विधाओं में अच्छी रचनाएं कर सकते थे। ऐसे सक्षम कवि की केवल एक एक गद्य पद्य की रचना उपलब्ध हुई है । सम्भव है कि खोज करने पर इनकी अन्य रचनाएँ भी उपलब्ध हों।
- हर्षकीर्ति--आपने सं० १७४७ में 'नेमीश्वर जयमाल' की रचना की। इसकी प्रतिलिपि दिगंबर जैन मंदिर फतहपुर के गुटका नं० ६४ में उपलब्ध है।
हरषचद साधु आपने सं० १७४० में 'श्रीपाल चरित्र' लिखा । आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सम्बन्धित अन्य कोई विवरण अथवा उद्धरण नहीं प्राप्त हो सका।
हर्षचंद - हर्षचन्द १८वीं शती में कई हैं। प्रस्तुत हर्षचन्द पावचन्द्र गच्छीय थे। इन्होंने 'वर्द्धमान जन्ममंगल' की रचना की है। रचना सम्बन्धी अन्य विवरण-उद्धरण नहीं उपलब्ध है।
हर्षनिधान--संभवतः ये अंचलगच्छीय साध थे। गुरुपरंपरा अज्ञात है। इन्होंने सं० १७८३ से पूर्व 'रत्न समुच्चय बालावबोध' ५ लिखा है। इनका भी विवरण अप्राप्त है। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग १, पृ० ५९३,
भाग ३ पृ० ८०६-७ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० १६५-६६ (न०सं०) । २. उत्तमचंद कोठारी नेमिराजीमती रचना सूची, प्राप्तिस्थान पार्श्वनाथ
विद्यापीठ, वाराणसी। ३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ. ३५९
(प्र०सं०) और भाग ५, पृ० ३७ (न ०सं०) । ४. वही भाग ३, पृ. १४७१ (प्र० सं०) और भाग ५, पृ० ३७२ (न०सं०) ५ वही भाग ३, पृ० १६४१ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० ३२. (न०सं०)।
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