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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
रचनाकाल इस कलश में बताया गया है--
ये तीर्थमाला अति रसाला, पंच कल्याणक तणी, संवत सतर से पंचाश वर्षे लाभ जाणी में भणी। श्री विजयरत्न सूरीश गछपति, सदा संघ सूहकरो,
गुरु लालविजय प्रसाद पभणे, सौभाग्यविजय जयकरो ।' यह रचना प्राचीन तीथमाला संञ्झाय में पृ० ७३ से १०० पर प्रकाशित है । श्री देसाई ने जैन गुर्जर कवियो के प्रथम संस्करण में गुरु परंपरा सोमविजय>चारित्रविजय 7 सत्यविजय के रूप में दर्शाई थी, परंतु ये तीनों ही हीरविजय के शिष्य हो सकते हैं।
एक अन्य सौभाग्यविजय का उल्लेख मिलता है जिनकी रचना का नाम 'चौबीसी' और भाषा मरुगुर्जर बताया गया है। रचनाकाल सं० १७५० के आसपास है। हो सकता है ये उपर्युक्त सौभाग्यविजय ही हों। इनका विशेष विवरण तथा रचना का उद्धरण उपलब्ध न होने से कुछ निश्चित रूप से कहना कठिन है।
हंसरत्न-तपागच्छीय राजविजयसूरि के गच्छ के हीररत्न > लब्धिरत्न>सिदिरत्न>राजरत्न>लक्ष्मीरत्न>ज्ञानरत्न के आप शिष्य थे। आप उदयरत्न के सहोदर थे और दीक्षा में काका गुरुभाई; आपके पिता पोरवाड शा वर्धमान थे तथा माता मानबाई थीं। आपका मूल नाम हेमराज था। उदयरत्न ने हंसरत्न संज्झाय लिखी है। आपका स्वर्गवास मियागांव में १७९८ चैत्र शुक्ल ९, शुक्रवार को हुआ था। आपने कई रचनाएँ मरुगुर्जर में की हैं, कुछ का परिचय प्रस्तुत हैचौबीसी (सं० १७५५) माघ वद ३ मंगलवार) का आदि
श्री ऋषभदेव स्तवन अजब रंगावो साहेबा चूनडी यह देशी
सकल वंछित सुख आपवा, जंगम सुरतरु नेह, अन्त- में गाया रे इम जिन चोबीशे गाया।
२. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ४१८-१९,
भाग ३, पृ० १३६७-६८ (प्र. मं.) और वही भाग ५, पृ० ४३-४४
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