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लाभवर्धन पाठक
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गुणवर्द्धन, सोमवर्द्धन और शान्तिहर्ष का सादर वन्दन किया गया है ।
शकुन दीपिका चौपई (५६४ कड़ी १७७० वैशाख शुक्ल ३ गुरुवार) वर्ष सत्तर सीत्तरि शुभ दाख, अषा त्रीज मास वैशाख शकुन दीपिका से चौपइ, वार वृहस्पति पूरी थइ । इनकी सभी रचनाओं का परिचय उद्धरण देना विस्तारभय के कारण सम्भव नहीं है । पर इतने नमूने के आधार पर अनुमान होता है कि ये भी अच्छे लेखक थे ।
लालचंद - आप विजयगच्छ के विद्वान् थे । इन्होंने सं० १७९९ कार्तिक शुक्ल पंचमी, चीताखेड़े में 'स्गरचन्द्र सुशीला चौपई' का निर्माण किया । इसका अन्य उद्धरण और विवरण अप्राप्त है । श्री अगरचन्द नाहटा इन्हें लूंकागच्छीय बताते हैं । इसकी एक प्रति महरचन्द भण्डार बीकानेर में सुरक्षित है । इनकी एक रचना की सूचना उत्तमचन्द कोठारी ने दी है । उसका नाम 'नेमिजी व्याहलो' बताया है । यह रचना सं० १७४४ की है । * नागरी प्रचारिणी की ग्रंथसूची में 'लालकृत 'नेमिनाथ का मंगल' का भी उल्लेख मिलता है । हो सकता है कि ये 'लाल' लालचन्द ही हों और 'नेमिनाथ का मंगल' नेमिजी का 'व्याहलो' ही हो। जब तक दोनों की प्रतियों का मिलान न हो जाय, इस सम्बन्ध में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा
सकता ।
लालरत्न -- ये तपागच्छीय राजरत्न के १७७३ में 'रत्नसार कुमार चौपई' की रचना किया । इस रचना का उद्धरण और अन्य विवरण आगे दिया जा
शिष्य थे । इन्होंने सं० पद्मावती नगरी में पूर्ण
१. मोहनलाल दलीचंद देसाई – जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ८३, २१०-२१७; भाग ३, पृ० १२१८ - १२२५ ( प्र०सं० ) और भाग ४, पृ० २३५-२४७ ( न० सं० ) ।
२. बही भाग ३, पृ० १४७१ (प्र०सं० ) और भाग ५ पृ० ३६४ ( न०सं० ) ।
३. अगरचन्द नाहटा परम्परा, पृ० १४४ ।
४. उत्तमचन्द भंडारी की सूची, प्राप्तिस्थान - पार्श्वनाथ विद्यापीठ, शोधसंस्थान, वाराणसी ।
५. श्री अगरचन्द नाहटा - परंपरा पू० ११३ ।
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