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विनीतविजय
४७३ प्रथम रचना ६९ छन्दों की और द्वितीय स्तवन कुल १५ कड़ी की है।
विनीतविजय --ये तपागच्छीय विजयनानन्द सूरि>विजयराज सूरि>प्रीतिविजय के शिष्य थे। इनकी रचना १२४ अतिचारमय श्री महावीर स्तव (१२५ कड़ी रचना सं० १७३२ आसो सुद १३) का रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है--
भेद संयम तणा चित्त धरो ओ दंत मित संवत सार,
आसो सुदि दिन तेरसि ओ तवन कयुं जयकार । इसका 'कलश' प्रस्तुत है
श्री वीर जिनवर भविक सुखकर कामितपूरण सुरतरु, तपगच्छनायक सुमति दायक श्री विजयाणंद सूरीसरु । तस पाटि सोहइ त्रिजग मोहइ श्री विजयराज सूरि गणधरु, पंडित श्री प्रीत विजय विनयी विनीतविजय मंगलकरु ।'
विनीतविमल-आप तपागच्छ के साधु शांतिविमल के शिष्य थे। आपने कई शलोको संज्ञक स्तवन लिखे हैं जैसे आदिनाथ शलोको नेमिनाथ शलोको और अष्टपद शलोको आदि । उनका परिचय आगे प्रस्तुत है।
आदिनाथ शलोको अथवा ऋषभदेव नुं गीत अथवा शत्रुजय शलोको का आदि--
सरसति माता द्यो मुझ वाणी; इसमें रचनाकाल नहीं है किन्तु यह विजयप्रभ सूरि के समय की रचना है; वे सं० १७४९ में स्वर्गवासी हुए थे अतः यह इससे पूर्व ही किसी समय लिखी गई होगी। कवि ने गुरुपरम्परा का उल्लेख इस प्रकार किया है-- तपगछनायक श्री विजयप्रभसूरि,
गिरुओ गच्छनायक पुण्याइ पूरी, कहे विनीतविमल कर जोड़ी,
भणतां आवे संपति कोड़ी। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पु० २९३
(प्र०सं०) और भाग ५, पृ० २-३ (न०सं०)।
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