________________
सत्यसागर
५११ समयनिधान-आप खरतरगच्छ के प्रसिद्ध विद्वान् समयसुंदर > हर्षनंदन>जयकीर्ति>राजसोम के शिष्य थे। इन्होंने 'सुसढ़ चौपाई' सं० १७३१ या ३७ में लिखी । 'संवत सतरै सैतीस' और संवत सतरै अकतीस' दोनों पाठ उपलब्ध होते हैं। यह रचना अकबराबाद में आलमगीर के समय हुई थी, यथा--- रिधू (धूरि) तले तसु राजमइ रे, संवत सतरै सैंतीस (अथवा)
संवत सतरै अकतीस । अकबराबाद कीधी अम्हे रे, आलमगीर अधीस ।'
पहले देसाई ने इस कृति का कर्ता समयसुन्दर को बताया था बाद में सुधार कर लिया और समयनिधान को कर्त्ता कहा। इसके अन्त में वही गुरुपरम्परा वणित है जो पहले दी गई है। इसमें लेखक ने अपने शिष्य मुरारी का भी उल्लेख किया है, इसमें भी यह कृति समयनिधान की ही प्रमाणित होती है क्योंकि. समयसुन्दर के किसी मुरारी नामक शिष्य का उल्लेख ज्ञात नहीं है। उसी के आग्रह पर यह रचना हुई, यथा
सुसढ़ तणी अति सुंदरु रे, मुझ शिष्य नाम मुरारी,
तेहनै करि देवो तुम्हे रे, अरज अह अवधारी । अगरचन्द नाहटा ने भी इसे समयसुन्दर की परंपरा में राजसोम का शिष्य बताया है और इनकी 'सुसढ़ चौपाई' का उल्लेख किया है । उन्होंने इसका रचनाकाल सं० १७३१ और रचना स्थान अकबराबाद बताया है।
समयमाणिक्य-सागरचन्द्र सूरि शाखा के साधु मतिरत्न इनके गुरु थे। इनका जन्म नाम समर्थ था और दीक्षा नाम समयमाणिक्य । इन्होंने दोनों नामों से रचनायें की हैं। इन्होंने मत्स्योदर चौपाई सं० १७३२ नागौर, मल्लीनाथ पंचकल्याणक स्तवन सं० १७३६ सकी ग्राम, बावनी और रसमंजरी आदि रचनायें की हैं। रसमंजरी की रचना १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो,भाग १, पृ० ३७० और
भाग ३, पृ० १२७७-७८ (प्र०सं०)। . २. वही भाग ४, पृ० ४५२-४५३ (न०सं०)। ३. अगरचन्द नाहटा - परंपरा पृ० ११० । ४. वही, परंपरा पृ० १०८ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org