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सुमतिसेन
५२७ सं० १७०७ में 'रात्रिभोजन चौपाई' की रचना की जिसमें रात्रिभोजन के दोष बताकर उसका निषेध किया गया है।'
(उपा०) सुमतिहंस--खरतरगच्छीय जिनहर्ष सूरि इनके गुरु थे। इन्होंने चंदनमलयागिरि चौपाई' (सं० १७११ चैत्र शुक्ल १५, बुरहानपुर) लिखी है जिसके आदि में मंगलाचरण है, यथा
स्वस्ती श्री पूरण सदा श्री चिन्तामणि पास, पणमिय परमानंद कर, अविचल लील विलास वीणा पूस्तक धारिणी, सरसति शास्त्र समृद्ध,
सरस वचन रचना दियो, वरदायिनी बहु बुद्धि । यह रचना शील के महत्व पर आधारित है, यथा
धरम धुरा दृढ धारिये धरम अनेक प्रकार, सविहु माहे सार छ, सत्व शील संसार ।
चंदन ने मलयागीरी सत्व शील बे राखि,
अविचल कीरति आदरी पार्श्वचरित नी साखि । गुरुपरंपरान्तर्गत कवि ने जिनहर्ष की वंदना की है। यह रचना उसने राजसिंह संघवी के पौत्र वीरधवल के आग्रह पर रची थी। रचनाकाल इन पंक्तियों में है
संवत सतर इग्यारा माहे चैत्र पूनिम सुखदाय,
शील तणा गुण भासिया अ, श्री सुमतिहंस उवझाय । इनकी दूसरी रचना 'वैदर्भी चौपाई' (सं० १७१३ कार्तिक शुक्ल १४, जयतारण) में वैदर्भी सती के श्रेष्ठ चरित्र का गुणगान है। कवि ने लिखा है
सतीय सिरोमणी सोहग सामिणी, वैदरभी गुणगाया, सफल जनम रसना पावन थइ, लाभ अनंता पाया। श्री जिनहरष सूरि राजे, श्री खरतर गच्छराया, तास सीस गुण गावे भावे, सुमतिहंस उवझाया।
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१. अगरचन्द नाहटा---परंपरा पृ० १०९ ।
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