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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कथा, पंचमास चतुर्दशी व्रतोद्यापन, ज्ञानपचीसी व्रतोद्यापन के अतिरिक्त अनेक भक्तिभाव पूर्ण पदों की भी रचना की है। रचनाओं के कुछ विवरण-उदाहरण दिए जा रहे हैं। आदित्यवार कथा (ज्येष्ठ शुक्ल १० गोपाचल गढ; लेखक गोपाचल गढ़ प्रायः आते जाते रहते थे।) इसे वीरसिंह जैन, (इटावा, १९०६) ने प्रकाशित किया है। इसे कवि ने जैसवाल साह भगवंत की पत्नी के आग्रह पर लिखा था। इसका संबंध जिनभक्ति से है; एक उदाहरण प्रस्तुत है--
कासी देश बनारस ग्राम, सेठ बड़ो मतिसागर नाम; तासु धरणि गुण सुंदर सती, सात पुत्र ताके सुभमती । सहसकूर चैत्यालयो एक, आये मुनिवर सहित विवेक;
आगम सुनि सब हरषित भए, सबै लोक वंदन को गये। इसके एक पद की भी कुछ पंक्तियाँ देखिए
जै बोलो पाश जिनेश्वर की, जुगल नाग जिहि जरता राख्या पदवी दई फणीश्वर की।
इत्यादि होली का आध्यात्मिक रंग देखिए, सुमति गोरी अपने पति चेतन के साथ होली खेल रही है
आतम ग्यान तणी पिचकारी, चरचा केसरी छोरो री चेतन पिय पै सुमति तिया तुम, समरस जल भर छोरो री।'
पंचमास चतुर्दशी व्रतोद्यापन और ज्ञानपच्चीसी की हस्तप्रतियाँ ढोलियों के जैन मंदिर, जयपुर के ज्ञानभंडार में उपलब्ध हैं।
सुरेन्द्रकीति ||---दिग० संत सुरेन्द्रकीति नामक कई मिलते हैं। काष्ठासंघ नंदीतट गच्छीय इन्द्रभूषण के एक शिष्य का नाम भी सुरेन्द्रकीर्ति था। इन्होंने भी कल्याण मंदिर, एकीभाव विषापहार और भूपाल स्तोत्र आदि का हिन्दी छप्पय आदि छंदों में रूपान्तरण किया है। इन्होंने कोई मौलिक रचना नहीं की। इनका समय भी १८ वीं शताब्दी (१७४४-१७७४) माना जाता है। इन्द्रभूषण के पश्चात् ये भट्टारक पद पर भी प्रतिष्ठित हुए थे। १. डा० प्रेमसागर जैन ... हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि प० २९८-३०० ।
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