________________
५१८
महगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रेयां नगर में बांकेराय भवानी नामक देवी का मंदिर है। इसकी प्रशस्ति में इस कृति की रचना उसी भवानी की कृपा का परिणाम कहा गया है।
सुखसागर II -दीपसागर के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७६३ में जिनसुन्दरसूरि कृत दीवाली कल्पसूत्र (सं० १४८३) पर 'कल्पप्रकाश' नामक बालावबोध की रचना की । अन्त में लिखा है
श्री ज्ञानविमल सूरीश्वर प्रसादात् सुख बोधार्थं, श्री दीपोत्सव कल्प स्तिबुकार्थ समर्पिता मयका । कवि दीप दीपसागर, शिशुना सुखसागरेण कृता,
गण रस मुनि विधु, माने संवत् १७६३ वर्षे श्री राजनगरे। इन्होंने पंचतत्व बालावबोध सं० १९६६ और पाक्षिक सूत्र बालावबोध सं० १७७३ में लिखा। इससे प्रमाणित होता है कि ये अच्छे गद्य लेखक थे, किन्तु इनकी गद्य शैली का नमूना नहीं मिला । पद्य में इन्होंने 'चौबीसी' लिखी है जिसके आदि और अंत की पंक्तियां दी जा रही हैं --- आदि-सकल पण्डित शिरोमणि पं. श्री दीपसागर गणि
परम गुरुभ्योनमः प्रथम जिणेसर प्रणमीइं मरुदेवी नो नंद, नाभि नृपति कुल मंडणो, वृषभ लंछन जिनचंद रे। कवि ने गुरु को प्रणाम करते हुए लिखा है
दीपसागर कविराय नो, सुखसागर कहे सीस रे । अन्त--संवेगी गछपति ज्ञानविमल सूरिराय,
ज्ञानादिक गुणनो पामी तास पसाय । तपगछ सोभाकर दीपसागर कविराय,
तेहनो लघुबालक सुखसागर गुणगाय । वृद्धिविजय रास---उपर्युक्त दोनों में से किसी एक सुखसागर ने या किसी अन्य सुखसागर ने प्रसिद्ध क्रियोद्धारक पन्यास सत्यविजय के शिष्य वृद्धिविजय की स्तुति में वृद्धिविजय रास' लिखा है। यह रास १. भोहनलाल दलीच द देसाई - जैन गुर्जर कथियो, भाग ५, पृ. २७६ न.सं.। २. वही भाग ५, पृ० ४५९-४६० (न०सं०)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org