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मुमतिरंग
५२३ हरिकेशी साधु संधि (९ ढाल सं० १७२७ श्रावण शुक्ल द्वितीया मंगलवार) आदि-- साध सकल प्रणमी करी, सिव साधक पिण साध,
जसु सेवा समरण थकी, रहइ न को अपराध । सोवाग-कूलनउ ऊपनउ, भूलोचर गुणधार,
हरिकेसीबल नाम मुनि, भिखू गुणभंडार । रचनाकाल--
संवत सतरइ सइ सतावीसइ श्रावण मास सुषावउ, सुकल पक्ष बीजा भृगुवारइ, भणे गुणि भावन भावउ री। सूरचंद्र कीरति जगि जैसी वाचक वाणि वतावउ,
सुमतिरंग साध के समरणि, सुखलाभ नित पावउ री।' जम्बूस्वामी चौपाई सं० १७२९ मुलतान, जिनमालिका (७ ढाल) और चौबीसी सवैया आदि का विशेष विवरण नहीं दिया गया है । भापकी एक लघु रचना 'चन्द्रकीर्ति कवित्त ऐतिहासिक रास संग्रह में संकलित है। अपने गुरु पर लिखी इस छोटी रचना का भी भावनात्मक तथा ऐतिहासिक महत्व है। इसमें कुल दो कवित्त हैं । यह रचना सं० १७०७ में विलाड़े में लिखी गई थी।
सुमतिवल्लभ--खरतरगच्छ की आचार्य शाखा के सूरि जिनसागर इनके प्रगुरु तथा जिनधर्मसूरि गुरु थे। इन्होंने जिनसागर सूरि के निर्वाण पर आधारित 'श्री निर्वाण रास' (८ ढाल, सं० १७२० श्रावण शुक्ल १५) लिखा। श्री जिनसागर सूरि का निर्वाण सं० १७२० ज्येष्ठ कृष्ण ३ को अहमदाबाद में हुआ था। उसके प्रायः डेढ़-दो माह पश्चात् ही यह रास लिखा गया, अतः इसमें गुणसागरसरि का प्रामाणिक वत्त उपलब्ध है। इसके आधार पर जिनसागर का मूल नाम चोला था। उनका जन्म सं० १६५२ कार्तिक कृष्ण १४ रविवार को बीकानेर निवासी साह वच्छराज की पत्नी गिरजादे की कुक्षि से हुआ था। उन्होंने जिनसिंह सरि से नौ वर्ष की वय में ही सं० १६६१ महा शुदि १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० १९७-२०२,
भाग ३, पृ० १२१५-१६ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० ३०१-३०५
(न० सं०)। २. ऐतिहासिक रास संग्रह, पृ० ४२२ ।
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