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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ज्ञानकीर्ति>गुणप्रमोद>समयकीर्ति>चन्द्रकीति । इनकी कुछ रचनाओं के विवरण-उद्धरण आगे दिए जा रहे हैं। प्रबोध चितामणि रास अथवा ज्ञानकला चौपाई अथवा मोह विवेक रास (सं० १७२२ विजयादसमी, रविवार, मुलतान) यह रास मुलतान प्रांत के नवलखा निवासी वर्द्धमान के आग्रह पर रचा गया था। इसका आदि देखें
परम ज्योति प्रकाश कर, परमपुरुष परतक्ष, परमज्ञान परमातमा अगम अरूप अलक्ष ।
सरसति गुणसारं अतिहि उदारं अगम अपारं सुखकारं, त्रिभुवन जन तारं महिमाधारं, विमलविचारं दातारं। दूरीकृत भारं विनयविकारं, कुमति विदारं अघहारं,
चरचति चितचारं सेवासारं गुणविस्तारं जयकारं । शांत रस की प्रशस्ति में कवि ने लिखा है-- नवरस सब जग क हितु हे अनिष्ट अष्ट करी अंध, शांत रस सब ते सरस, ते सरस भाखो श्री भगवंत । ओर रस अलखामणा, करी कुमति विकार, शांति रस सेवे जिको, तिणंकु सुख श्रीकार ।
इसमें ही उपर्युक्त गुरुपरंपरा बताई गई है। रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है -
खरतरगच्छ नायक खरो सरस संबंध सिवदाय, नयण नयण द्विय शशि (१७२२) सही अ,
अश्वनि मास मन भाय । विजय विजयदशमी दिने आदितवार उदार । सुमति रंग सदा लहि मे शिववधु-सुख-हेत, प्रबोध चिंतामणि ग्रंथ अ, उधरीयो धर्म हेत । ज्ञानकला शिवसाधना अ, ओ इण चोपइ नाम ।
आतम गुण आराधना अ, पांचमे अविचल ठाम । इसमें कवि ने वर्द्धमान के परिवार की पर्याप्त प्रशंसा की है। योग शास्त्र भाषा पद्य (सं० १७२० आश्विन सुदी ८) भी वन्नू (मुलतान) निवासी चातड़मल, वर्द्धमान के आग्रह पर लिखी गई थी।
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