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सुखसागरें
५१९ 'जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय' और 'ऐतिहासिक रास संग्रह' भाग ३ में प्रकाशित है । इसमें रास का रचनाकाल नहीं है । पर वृद्धिविजय का स्वर्गवास सं० १७६९ कार्तिक कृष्ण अमावस्या को हुआ था, इसलिए यह इसी तिथि के कुछ बाद का रचित होगा। यह रचना कवि ने वृद्धिविजय के शिष्य हंसविजय के आग्रह पर की थी-- यथा-धर्ममित्र सुखसागर कवि इणि परि भणे रे,
हंसविजय नै हेति तास कहण थी चरित कह्यां मे तेहना रे,
प्रीति तणे संकेत । ये वृद्धिविजय विजयसिंह सूरि के प्रशिष्य और सत्यविजय के शिष्य थे। इस रास से ज्ञात होता है कि वद्धिविजय डालभी ग्राम वासी आणंद की पत्नी उत्तमदे की कुक्षि से उत्पन्न थे और इनके बचपन का नाम बोधो था । सत्यविजय के उपदेश से इन्हें वैराग्य हआ और सं० १७३५ में इन्होंने उनसे दीक्षा ली तथा नाम वद्धिविजय पड़ा। एक दूसरे वृद्धिविजय भी इसी समय के आसपास हो गये हैं जो कर्पूरविजय के शिष्य थे और जिन्होंने उपदेशमाला बालावबोध तथा जीवविचार स्तवन लिखा है। जिनविजय सूरि ने 'कर्पूरविजय निर्वाण रास' लिखा है और उसमें इनके शिष्य वृद्धिविजय का उल्लेख है । 'वृद्धिविजय गणि रास' का आदि इन पंक्तियों से हुआ है-- प्रेमे प्रणमी पाय चोविस जिन तणा,
जगनायक जगहित करु अ; सिर धरि जेहनी आण सकल सुरासुर,
आदर आणी अति घणो । वलीवली सरसति माय पायकमल नमी,
जेह थी मति अति पामीइ ओ, गाऊं गुरु गुण रास आस उमाहलो,
ओ माहरो पूरण करो ।
श्री सत्यविजय कविराज केरा श्री सीस सुंदर गुणनिल्या,
श्री वृद्धिविजय पन्यास पदवी सोहता गुण अतिभला । १. जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य-संचय, पृ० २० ।
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