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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इन्होंने समर्थ नाम से की है । इस रचना की भाषा शुद्ध हिन्दी है । इन्होंने 'रसिक प्रिया' की वृत्ति संस्कृत में लिखी है । इससे अनुमान होता है कि ये मरुगुर्जर हिन्दी और संस्कृत भाषा में सुविज्ञ थे । इनकी अन्य रचनाओं का विवरण - उदाहरण नहीं उपलब्ध हो सका पर रसमंजरी का विवरण देसाई के आधार पर प्रस्तुत किया जा रहा है । यह वैद्यक का ग्रंथ है । इसकी रचना सं० १७६५ फाल्गुन ५ रविवार को देरा ग्राम हुई थी, यथा
संवत सतरै सै पैसठ समे,
फागुण पंचमी तिथि अरु आदित वार,
रमै, कीयो ग्रंथ देर मझारि ।
भाषा सरल करी अति स्वाद'
श्री मनिरतन गुरु परसाद,
ताको शिष्य समर्थ है नाम,
तिस करी यह भाषा अभिराम । यह रचना किसी बनवाली के आग्रह पर लिखी गई थी, यथारसमञ्जरी तौ रससेती भरी, पढ़ौ गुणहु आदर करी, बनवाली को आग्रह पाई, कीयो ग्रंथ मूरख समझाई । '
मास-मन
समयमाणिक्य ने यह रचना सम्भवतः किसी पूर्व ग्रन्थ के आधार पर भाषांतरित की थी। वे उस समय तक दीक्षित हो चुके थे पर रचना में अपना जन्म नाम-समर्थ ही उन्होंने दिया है ।
समयहर्ष - ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में इनका एक गीत 'सुखसागर गीतम्' शीर्षक से उपलब्ध है । इससे इनका कवि होना प्रमाणित होता है किन्तु इनकी जीवनी और गुरुपरंपरा ज्ञात नहीं है । इसमें कुल ६ सवैये हैं । कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैंवाचनाचार्य सुखसागर वंदियै,
सुगुण सोभाग जसु जगि सवायो,
अंग उच्छरंग धरि नारिनर नित नमै,
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कठिन किरिया करेण ऋषि कहायो ।
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १२५५-५६
(प्र०सं) भाग ५, पू० २३० ( न० सं० ) ।
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