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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सम्राट अकबर से भेंट का भी उल्लेख किया है। इन्होंने 'जंबूस्वामी रास' भी लिखा है पर इसका विवरण-उद्धरण नहीं प्राप्त हो सका। प्रथम रचना का विवरण आगे दिया जा रहा है। 'भावीनी कर्मरेखा रास' का रचनाकाल निम्नांकित पंक्तियों में है
युग्म नयन मुनिचंद अंक वाम गति जाणी, श्रावण वदि पांचमी रविवारइ, ऊलट मन मांहि आणी रे । विबुधावतंसक मानविजय वर अमृत वाणि सुहाया, तास प्रसाद लही तस सेवक, वीरविमल गुण गाया रे ।
मइ आज परमसुख पाया रे । रचनास्थान के बारे में सूचना इस प्रकार है --- वरहानपुर मंडन वामानंदन, पामी तास पसायो रे,
मैं आज परमसुख पायो रे।'
वृद्धि विजय --आप तपागच्छ के विद्वान् धीरविजय के प्रशिष्य एवं लाभविजय के शिष्य थे। इनकी गद्य-पद्य विधा में कई रचनाएँ उपलब्ध हैं जिनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है---
ज्ञानगीता (३५ कड़ी सं० १७०६, साईपुर) इसमें विजयदेव, विजयप्रभ के पश्चात् धीरविजय और लाभविजय की वंदना गुरुपरंपरा के अन्तर्गत की गई है। यह रचना प्राचीन फागुसंग्रह में प्रकाशित है। उसमें इसकी ३५ नहीं ५१ कड़ियाँ बताई गई हैं। रचनाकाल संबंधी कड़ी ही ५१वीं है। इसमें मोह की प्रबलता और उससे रक्षा हेतु संखेश्वर पार्श्वनाथ से प्रार्थना की गई है। कुछ संबंधित पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं ---
मोह तणें कर चडीयो जडीयो माया जाल,
ते गत जाणे अवर को तुझ विण दीनदयाल । मोह की प्रबलता दिखाने के लिए मोहग्रस्त महेश, ब्रह्मा, कृष्ण आदि का नाम लिया गया है, यथा -- १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई- जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० १९६-१९७
(प्र०सं०) और भाग ४, प.० ३१५-३१६ (न० सं०)। २. प्राचीन फागुसंग्रह पृ० २१७ ।
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