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शांतसौभाग्य
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शांतसौभाग्य -तपागच्छीय राजसागर सूरि>वृद्धिसागर>लक्ष्मी सागर-कल्याणसागर>सत्यसौभाग्य ( उपा० )> इन्द्र सौभाग्य > वीर सोभाग्य >प्रेम सौभाग्य के शिष्य थे । आपकी एकमात्र रचना 'अगडदत्त ऋषी नी चौपाई प्राप्त है जो सं० १७८७ में पाटण में लिखी गई थी। इस रचना का कोई अन्य विवरण और उद्धरण प्राप्त नहीं है।
- शांतिदास -श्रावक थे। इनकी रचना 'गौतम स्वामी रास' (६५ कड़ी) सं० १७३२ आसो शुक्ल १० को पूर्ण हुई थी। इसका आदि निम्नवत् है--
सरस वचन दायक सरसती, अमृत वचन मुख थी वरसती। सहगुरु केरु कीने ध्यान, अलवे आले बुद्धि निधान । तीर्थकर चौबीसे तणा, अक मनां गुण गाऊ घणा ।
विरहमान वंदु जिन वीस, सिद्ध अनंता नामु सीस । रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है
संवत सतर बत्रीसे लहुं, आसो सुदिन दसमी कहुं; कर जोड़ी कहे शांतिदास, गौतम ऋषि आपो सुखवास ।
शांतिविजय--आपने 'शत्रुञ्जय तीर्थमाला' (३ ढाल) सं० १७९७ माह शुक्ल २) का निर्माण किया है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ आगे दी जा रही हैं-- आदि-- आदीसर अरिहंत जी, नाभिराय कुल मउड;
मरुदेवा सुत गुणनिलउ, आपै अविचल ठउड ।
तीरथ ओ सासतउ जासा, श्री वीरवचन प्रमाण; साध सीधा अनंता कोड, ते प्रणमुंबे कर जोड़।
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, ५० ५६३
(प्र०सं०) और भाग ५, पृ० ३३७-३३८ (न०सं०)। २. वही, भाग २, पृ० २९०-२९१, (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० १
(न०सं०)।
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