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________________ शांतसौभाग्य . . ४९७ शांतसौभाग्य -तपागच्छीय राजसागर सूरि>वृद्धिसागर>लक्ष्मी सागर-कल्याणसागर>सत्यसौभाग्य ( उपा० )> इन्द्र सौभाग्य > वीर सोभाग्य >प्रेम सौभाग्य के शिष्य थे । आपकी एकमात्र रचना 'अगडदत्त ऋषी नी चौपाई प्राप्त है जो सं० १७८७ में पाटण में लिखी गई थी। इस रचना का कोई अन्य विवरण और उद्धरण प्राप्त नहीं है। - शांतिदास -श्रावक थे। इनकी रचना 'गौतम स्वामी रास' (६५ कड़ी) सं० १७३२ आसो शुक्ल १० को पूर्ण हुई थी। इसका आदि निम्नवत् है-- सरस वचन दायक सरसती, अमृत वचन मुख थी वरसती। सहगुरु केरु कीने ध्यान, अलवे आले बुद्धि निधान । तीर्थकर चौबीसे तणा, अक मनां गुण गाऊ घणा । विरहमान वंदु जिन वीस, सिद्ध अनंता नामु सीस । रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है संवत सतर बत्रीसे लहुं, आसो सुदिन दसमी कहुं; कर जोड़ी कहे शांतिदास, गौतम ऋषि आपो सुखवास । शांतिविजय--आपने 'शत्रुञ्जय तीर्थमाला' (३ ढाल) सं० १७९७ माह शुक्ल २) का निर्माण किया है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ आगे दी जा रही हैं-- आदि-- आदीसर अरिहंत जी, नाभिराय कुल मउड; मरुदेवा सुत गुणनिलउ, आपै अविचल ठउड । तीरथ ओ सासतउ जासा, श्री वीरवचन प्रमाण; साध सीधा अनंता कोड, ते प्रणमुंबे कर जोड़। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, ५० ५६३ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० ३३७-३३८ (न०सं०)। २. वही, भाग २, पृ० २९०-२९१, (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० १ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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