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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास देने विनयप्रभ सूरि १५५ साधुओं के साथ पालीताणा पधारे थे, कनि ने लिखा हैसंवत सत्तर सार बावीस मां,
जात्र जूगति करी ओ बरषइ, जंगम तीरथ जैन शासन पती,
वंदीया विजयप्रभ सूरी हरषइ । इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नांकित हैं
सरसति माय मया करी, आपो वचन विलास,
श्री शत्रुजय गिर तणुं, तवन करुं उल्लास । यह प्रकाशित है। इन्होंने 'शत्रुजय स्तवन' नामक एक अन्य रचना भी उसी समय की थी इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैंसकल तीरथ मां भूलगो रे लाल,
सेजेज तीरथ सार, मनमोहोरे । सिद्ध अनंत इह्या हुया रे लाल,
अहनो महिमा अपार । सेत्रंज सेवो भविजना रे लाल ।
इसका रचनाकाल निम्नलिखित पंक्तियों में वर्णित हैसंवत सत्तर बावीसनी रे लाल,
माह सुदि पंचमी सार, मन; संघ साथि जात्रा करी रे लाल,
सफल को जवार, मन । यह स्तवन उसी समय लिखा गया था जब इन्होंने संघ के साथ शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा की थी।
संघ यात्रा के समय जनागढ़ में नवाब सरदार खान राज्य करते थे। गुरुपरंपरा इस प्रकार बताई है
सुमति कुशल पंडित तणो रे लाल, विनीत कुशल कहइ सीस, मन; सेब्रुज मंडण माहरी रे लाल, पूरो मनह जगीस, मन ।'
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० २०४-०६
(न०सं०) और भाग ४, पृ० ३१६-३१८ (न० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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