________________
४७०
मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'सहस्रफणा पार्श्वनाथ स्तवन' (४५ पद्यों) की रचना शाहपुर में की। आपकी अन्य रचना 'चौबीस जिनभास' का भी उल्लेख मिलता है।' इनका विवरण आगे प्रस्तुत है।
सहस्रफणा पार्श्वनाथ स्तवन (४५ कड़ी, सं० १७०१ मागसर शुक्ल ६, सोमवार, साहपुर) का आदि---
श्री सुखकारण जगपति, प्रणमी जग जीवन्न;
सहस्रफणा जिन पास नु, रचसु सरस तवन्न । रचनाकाल
संवत सतर अक तेरइ, प्रतिष्ठा हो करि मोटइ मंडाण, मागसिर सुदि छठि तिथि भली, सोमवार हो खरची द्रव्य अनेक
जिनवर सहस्रफणा तणी, करावि हो प्रतिष्ठा सुविवेक । गुरु- तुझ नाम जपस्ये कुमति वमस्ये,
तारसि तेहने जग धणी, गुणशील शिष्य विनयशील,
जंपे देव दि मति आपणी । '२४ जिनभास' का आदि -- तूं मुझ साहिब हूं तुझ वंदा, अपर परंपर परमानंदा, हो निजित मोह मनोभव फंदा, भविजन मन कैरव का चंदा, हो ।
इसमें रचनाकाल एवं स्थान का उल्लेख नहीं है। ऋषभ स्तुति संबंधी कुछ इसकी पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-- तुझ गुण निसदिन जपत सुरिंदा,
. पढ़ते जस अकुलात फणिदा हो, गिरिवट वृक्ष वासी जे मुनिंदा,
ध्यावत तुझ पद सहज दिणंदा हो। तुझ पद कमल अरविंदा,
पूजत देखत नाहि मतिमंदा हो, विनयशील प्रभु आदि जिणंदा,
हूँ तुझ सेवक नहीं आप छंदा हो ।' १. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ११२-११३ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० ११२५-२७
(प्र०सं०) और भाग ४, पृ० ३३-३४ (न०सं०) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org