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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास की रचना इस अज्ञात शिष्य ने सं० १७६२ में की जो मूलतः जयानंद सूरि कृत है। परंतु इसके गद्य का नमूना नहीं उपलब्ध है।
विद्याकुशल--चारित्र धर्म--ये खरतरगच्छीय आणंदनिधान के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७९१ लूणसर में रामायण चौपाई की रचना की। यह वाल्मीकि रामायण का मरुगुर्जर जैन संस्करण होगा। इसका उद्धरण उपलब्ध नहीं है।
विद्यारुचि-आप उदयरुचि के शिष्य थे। इन्होंने चंदराजा रास (६ खण्ड) बनाया। इसके अलग-अलग खण्ड भिन्न-भिन्न समय में रचे गये। दूसरा खण्ड सं० १७११ भीनमाल में लिखा गया और तीसरे से छठे खण्ड तक की रचना सं० १७१७ सिरोही में हई। यह १०३ ढाल, २५०५ गाथाओं में आबद्ध है। इसे विद्यारुचि ने अपने गुरुभाई लब्धिरुचि के सहयोग से पूरा किया था।
श्री देसाई ने इनकी गुरुपरंपरा इस प्रकार बताई है--ये तपागच्छीय विजयप्रभसूरि > सहजकुशल > सकलचंद > लक्ष्मीरुचि > विजयकुशल > उदयरुचि > हर्षरुचि के शिष्य थे। तीसरे खण्ड के अन्त में कवि ने स्वयं को हर्षरुचि का शिष्य कहा है। यथा-- तपगछनायक तेजदिणंद,
जइकारी विजइप्रभ सूरीद, तस गछ कोविद करि फूलसिंह,
श्री उदयरुचि वांदी शिरसीह । तास सीस समतारस पूर,
विबुध हरषरुचि पुन्य पडूर, तास सेवक विद्यारुचि कहइ,
सीलई ऋद्धिवृद्धि सुख लहइं। इस खंड में हीरविजय और अकबर की भेंट का भी उल्लेख है तत्पश्चात् विजयदेव, विजयप्रभ, सहजकुशल, कुशलचंद, लक्ष्मीरुचि,
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १६२५
(प्र०सं०) और भाग ५ पृ० २२१ (न०सं०) । २. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० १०९ ।
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