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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पहले ही कवि ने ३९ कड़ी की रचना के लिए चार नाम बताये और सीख देने की घोषणा कर दी, इसलिए इसमें किसी काव्य तत्व की तलाश अनावश्यक प्रतीत होती है। इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है।
संवत सतरे वरस चोवीसे, श्रावण सुदि छठ दिवसे,
श्री जिन प्रतिमा नु दरसण करतां, कमल रतन विकसे रे । कवि ने स्वयं का परिचय दिया है, यथा--- साह बधो ने जातें पीपाडो, नगर सोजित नो वासी, ओ तवन तव्यो सद्गुरु ने वयणे, थे छोडो कुमति नी पासी रे।'
यह महावीर की प्रतिमा का स्तवन है और सोजित में स्थापित महावीर की प्रतिमा को अर्पित है। इस स्तवन के पाठ से कवि का विश्वास है कि कुमति का नाश होता है।
वर्द्धमान-ये पार्श्वगच्छ के साधु कवि थे। इन्होंने सं० १७०५ आश्विन शुक्ल १ को 'हंसराज वछराज चौपाई' की रचना की। यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा गया है कि वर्द्धमान इस रचना के वास्तविक लेखक थे या मात्र प्रतिलिपिकार थे, क्योंकि नाहटा संकलन में जो प्रति उपलब्ध है उस पर 'लेखि वर्द्धमानेन' लिखा है, यह दोनों अर्थ देता है । अतः यह शोध का विषय है।
वरसिंह-लोकागच्छीय तेजसिंह>कान्ह>दामसि के ये शिष्य थे। इन्होंने 'नवतत्व चौपाई' की रचना (१३२ कड़ी) सं० १७६६ कालावड में की। इसका रचनाकाल बताने वाली पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं
संवत सतर छास, उल्लास, नगर कालाउड रह्या चौमास; गांधी गोकल वीनती करी, दाम सुनी शिक्ष चित में धरी ।
गुरुपरंपरा वही इसमें बताई गई है जो ऊपर दी जा चुकी है। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १२३३
(प्र०सं) और भाग ४, पृ० ३४१ (न० सं०)। २. वही, भाग ३, पृ० ११४२(प्र०सं०) और भाग ४, पृ० १४६(न० सं०)।
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