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ज्ञानसागरें
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गुणवर्मा रास अथवा चरित्र (६ खण्ड ९५ ढाल ४३७१ कड़ी, सं० १७९७ आषाढ़ शुक्ल २ सूरत) का आदि--
सुख सम्पत्तिदायक सदा, पायक जास सूरिंद,
प्रणमु पास जिनेसरु गोड़ी सुरतरु कंद । .. इसमें विधिपक्ष की परम्परा का अपेक्षाकृत विस्तार से वर्णन किया गया है और आर्य रक्षित से लेकर जयसिंह, धर्मघोष, मेरुतुङ्ग, जयकीर्ति, सिद्धान्तसागर, भावसागर, कल्याणसागर, अमरसागर तक की वन्दना की गई है। रचनाकाल--संवत नय निधि मुनि शशि (१७९७) सुरति रही चोमास,
__अषाढ़ शुदि द्वितीय सिद्धिजोगे, पूरण कीध अ रास रे । इसमें गुणवर्मा के चरित्र चित्रण के साथ उन श्रेष्ठियों, श्रीमन्तों की भी प्रशंसा है जिन्होंने जैन संधयात्राओं, दीक्षा समारोहों और साधुओं के चातुर्मास आदि पवित्र कार्यों में पर्याप्त धन खर्च किया। इनमें कपूरचन्द, खुशालचन्द, गोड़ीदास, जीवनदास और धर्मचन्द आदि उल्लेखनीय व्यक्ति हैं। यह जैन धर्म प्रसारक वर्ग द्वारा प्रकाशित है।
कल्याणसागर सूरि रास—यह सं० १८०२ की रचना है। यह श्रावण शुक्ल ६, मांडवी में पूर्ण हुई थी। इससे ज्ञात होता है कि अंचलगच्छ के चौसठवें पट्ट पर कल्याणसागर सूरि विराजमान थे। उनके शिष्य अमर सागर और प्रशिष्य विद्यासागर हुए थे। यह रचना शाह गेलाभाई तथा देवजीभाई माणेक द्वारा प्रकाशित है। इनकी अन्य रचनायें, जिनका नामोल्लेख किया जा चुका है, प्रायः १९वीं विक्रमीय की हैं इसलिए उनका विशेष विवरण यहाँ नहीं दिया जा रहा है।
ज्ञानहर्ष -ये खरतरगच्छीय साधु रचनाकार थे। इनकी गुरु परम्परा का पता नहीं चल सका। इन्होंने जिनचन्द्र सूरि गीतादि लिखे हैं इसलिए इनकी गुरु परम्परा जिनचन्द्र से सम्बन्धित अवश्य १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग २ पु० ५७४-५७८ .और भाग ३ पृ० १२-१४ तथा १४५५ (प्र० सं०)। २. वही भाग ५ पृ० ३२९-३३६ (न०सं०)। ..
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