________________
मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पार्श्वनाथ कथा--यह पद्यबद्ध काव्य भगवान पार्श्वनाथ के जीवन चरित्र से संबंधित है।
पुष्पदंत पूजा-इसका उल्लेख का० ना० प्र० सभा के १५वें त्रैवार्षिक विवरण में पृ० ८९ पर हुआ है। इसमें ६७२ अनुष्टुप छंद हैं इसमें नौवें तीर्थंकर पूष्पदंत की पूजा का माहात्म्य बताया गया है। इसका आदि देखिए --
अगर अवर धूप चंदन लेवो भविजन लाय ।
देखे सुर खग आनि कौतिग जय मेरु सुदर्शन । अन्त - अजर अमर सोउ जित्य भयो, सो जिनदेव सभा को जयो ।
दीन दीख्यौ रच्यो पुरान, ओछी बुधि में कियो बखान ।' नेमिनाथ रास---यह अच्छी रचना है, इसमें १५५ पद्य हैं। चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है। इस रास में नेमिनाथ को वैराग्य उत्पन्न करने वाली वैवाहिक घटना का मार्मिक वर्णन है। विवाह के अवसर पर द्वार पर बंधे पशुओं को, जिनको काटकर बारात को भोज दिया जाना था, देखकर नेमि को करुणा उत्पन्न हुई और वे सब छोड़कर विरक्त हो गये, किन्तु राजीमती का परम मर्मान्तक विरह जीवन भर के लिए उद्दीप्त कर गये । यह रास उसी प्रसंग पर आधारित है। नववधू के वेश से सजी दुल्हन राजीमती का वर्णन इन पंक्तियों में द्रष्टव्य है--
रूप अञ्चगल णेमिकुमार, सुण राजीमती कियो शृंगार । कर कंकण बहु हीरा जड्यो, पहिरि हार गजमोती मढ्यो ।
पहिरि पटोरें दक्षिण चीर, जणिकुं सिंदूरह मिलियो खीरु ।
चलणन्ह नेवर को झणकार, सब वर्णों तो होइ पसार । इसके प्रारम्भ में सरस्वती की वन्दना है, यथा --- सरस्वती माता बुद्धिदाता, करहु पुस्तक लेई, उर पहिरि हारु करि सिंगारु हंस चढ़ी वर देई ।'
१. प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, पृ० ३०५ । २. वही पृ० ३०६ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org