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रामचन्द्र
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प्रसंगों के कारण विशिष्ठ बन गया है। इसकी प्रति दिगम्बर जैन मंदिर, वासन दरवाजा, भरतपुर (राजस्थान) से प्राप्त हुई।
रामचन्द्र-पावचन्द्रगच्छ के हीराचन्द्र>चन्द्र के शिष्य थे। इन्होंने दिगम्बर साधु नेमिचन्द्र कृत द्रव्यसंग्रह पर 'द्रव्यसंग्रह बालावबोध' लिखा। इस लेखक और इसकी रचना का अन्य विवरण एवं उद्धरण नहीं मिला, यद्यपि इसकी चर्चा देसाई और नाहटा दोनों ने की है।'
रामचन्द्र चौधुरी-आपकी एक सामान्य कृति 'चतुर्विंशति जिन पूजा', जो एक प्रकार की 'चौबीसी' है, का उद्धरण देसाई ने दिया है। इसके आदि और अंत की पंक्तियाँ प्रस्तुत कर रहा हूँआदि-सिद्धि बुद्धिदायक कर्मजित भरमहरण भयभंजन,
चउबीसू जिन द्यउ मुझइ ज्ञान नमू पदकंज । अंत-वृषभ आदि चउबीस जिनेश्वर ध्यावही,
अर्घ्य करइ गुण गाय तूर बजावही । ते पावइ सिव सर्म भक्ति सुरपति करइ,
रामचन्द्र सकताही कीर्ति जग विस्तरइ । इति श्री चतुर्विशति पूजा चौधरी रामचन्द कृत संपूर्ण ।
रामचन्द्र-इनके गुरु खरतरगच्छ के प्रधान जिनसिंह सूरि के शिष्य पद्मकीर्ति के शिष्य पद्मरंग थे। पद्मकीर्ति को कवि ने चौदह विद्याओं में पारंगत और चारों वेदों का अर्थ पहचाननेवाला बताया है,
यथा
श्री जिनसिंह सूरि सुखकारी, नाम ज. सब सुर नरनारी, जाकै शिष्य सिरोमण कहिये, पद्मकीर्ति गुरुवर जसु लहिये । विद्याच्यार दस कंठ बखाण, वेद च्यार को अरथ पिछाने ।
पद्मरंग मुनिवर सुखदाई, महिमा जाको कही न जाई। १. (अ) अगरचन्द नाहटा--राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २३२ । (ब) मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १६२८
(प्र०सं०) और वही भाग ४ ५० ३०५ (न०सं.)।.. . २, बही, भाग ५, पृ० ४२०-४२१ (न० सं०)।
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