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लब्धिविजय
लब्धिविजय-तपागच्छीय विजयसिंह 7 विजयदेव 7 संजमहर्ष गुणहर्ष आपके गुरु थे। इन्होंने 'उत्तम कुमार रास' सं० १७०१ कार्तिक शुक्ल ११ गुरुवार को पूर्ण किया । इसका आदि
श्री गुणहरष (गुरु) तणो, पामी पुण्य प्रभाव, विषम विघन जल तार वा, जे वड अविहड नाव ।
वीणा पुस्तक धारिणी भगवती भारती देव,
कवित्त करूं संखेप थी, हियडे तुझ समरेव । रचनाकाल
संवत सतर शत अंक ऊपरि (१७०१) वरसि कातिमास,
उज्जवल अग्यारसे गुरुवासरें, रच्यो रास उल्लास । गुरुपरंपरा
श्री तपगछ गयणंगणि दिनमणि, श्री विजयदेव सूरींद, विजयसिंह सूरी आचारज, प्रतपो ज्यां रविचंद । तास पटपर गुरु तप गछपति विजयदेव सूरिराय, तास सीस संजमहर्षाभिध वरपंडित कहवाय । तास सीस पंडित मुगुटमणि, श्री गुणहर्ष सुसीस, लब्धिविजय कवि कहे करजोडी, इमि हर्ष निसदीस । आपकी दूसरी रचना 'अजापुत्र रास' का रचनाकाल सं० १७०३ आसो शुक्ल १९ है । इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं
बंदु श्री जिनवर तणां चरण कमल उल्हास, जे प्रणमंते पामीइ, शिवसुख वारेमास ।
श्री सरसती तु सारदा, गिरवांणी गुणगेल,
ब्रह्माणी ब्रह्मांडवि, मोह्ययो मोहनवेलि । रचनाकाल
संवत सतरत्रन आसु सुद मां दसमी शुक्रे सही,
श्री अजापुत्र तथा सुकोमल, रास वंधे अम कही। इसमें भी उपर्युक्त गुरुपरंपरा दी गई है। तत्पश्चात् अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
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