________________
४४०
मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
तसु पाटै जयनंदन चिरजयो रे, लबधसागर शिष्य तास, संवत सतरै सै सित्यरे समै रे, उत्तम आसू मास । पषि अंधार पांचिम थावरै रे, चडा गांम मझार,
चोपी कीधी पूरी चूंप सूं रे, आंणी हरष अपार ।' अगरचंद नाहटा ने इनका जन्म नाम लालचंद बताया है। इनकी रचना का नाम ध्वजरंग कुमार चौपाई तथा रचना स्थान का नाम भी (संभवतः छापेखाने की असावधानी के कारण) चूहा ग्राम लिखा है। पहले भ्रमवश इस रचना को किसी तपागच्छीय लब्धिसागर की कृति बताया गया था, किन्तु यह प्रमाणित हो गया है कि प्रस्तुत लब्धिसागर खरतरगच्छीय थे।
लब्धोदय गणि--ये खरतरगच्छीय जिनमाणिक्य सूरि शाखा के विद्वान् और जिनरंग सूरि की गद्दी के आज्ञानुवर्ती थे। इनके गुरु का नाम ज्ञानराज था । श्री नाहटा ने इनका जन्म सं० १६८० के आसपास अनुमानतः बताया है। उनका कथन है कि इनकी प्रथम रचना पद्मिनी चरित्र १७०६ से प्रारंभ होकर सं० १७०७ की चैत्र पूर्णिमा को पूर्ण हुई। उस समय तक ये ‘गणि' उपाधि से विभूषित हो चुके थे और इनकी आयु लगभग २७ वर्ष की होगी। इनकी दीक्षा इस अनुमान के आधार पर सं० १६९५ में पूर्ण हुई होगी। इनका दीक्षा नाम लब्धोदय था। इनके बाल्यकाल का नाम लालचंद था। इनकी गुरुपरंपरा इस प्रकार है। खरतरगच्छीय जिनमाणिक्य सूरि>विनयसमुद्र>हर्षविलास 7 ज्ञानसमुद्र 7 ज्ञानराज। इनकी प्रथम रचना पद्मिनीचरित्र अथवा गोराबादल चौपाई (३ खंड ८१६ कड़ी) सं० १७०७ चैत्र शुक्ल १५ शनिवार को चित्तौड़ में पूर्ण हुई थी। यह शील के माहात्म्य पर रचित है। मेवाड़ के राणा जगतसिंह की माता जंबूवती के मन्त्री कटारिया केशरी के पुत्र हंसराज भागचंद के आग्रह पर यह रची गई थी। इस पर हेमरत्न की तत्संबंधी रचना का भी प्रभाव है। इसमें भागचंद और उनके परिवार का भी उल्लेख है। यह रचना भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित होकर रिचर्स इंस्टीच्यूट बीकानेर से
१. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग १, पृ० १०१, . भाग २, पृ० ५१४ (प्र० सं०) और वही भाग ५, प० २७८ (न०सं०)। २. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० १०९।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org