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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तस सीस लीला लबधि विजयभिध विबुध भावें मणे,
अजापुत्र नरपति निघट निरुपम कीरतपट हो रणंजये। इस रचना में सात खण्ड और २९ ढाल हैं । इन विस्तृत रचनाओं के अलावा आपने मौन एकादशी स्तवन, सौभाग्यपञ्चमी ज्ञानपंचमी स्तवन और पंच कल्याणकाभिध जिनस्तवन नामक तीन स्तवन भी लिखे हैं। प्रथम स्तवन की अंतिम दो पंक्तियाँ उदाहरणार्थ उद्भत कर रहा हूंश्री विजयदेव सूरीदेव सद्गुरु लो,
श्री गुण हरष कवी सीस लेशि; मौन अकादशी दिवस महिमा कह्यो, ।
गहगह्यो लबधि लीला विशेषि ।' पंचकल्याणाभिध जिन स्तवन की प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नांकित हैं--
चौबीसई जिणवर नमी, निअ गरु छरण नमेवि,
कल्याणक तिथि जिनतणी, सुणि भवियण संखेवि । इनका उल्लेख नवीन संस्करण में सम्भवतः छूट गया है।
लब्धिविजय (वाचक) ---आप पौणिमागच्छीय लक्ष्मीचंद सूरि के प्रशिष्य और वीर विमल के शिष्य थे । आपकी एक रचना 'सुमंगलाचार्य चौपाई' का उल्लेख मिलता है। यह रचना सं० १७६१ भागवानगर पूर्ण हुई थी। इसके मंगलाचरण की प्रारंभिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं--
सकल सुरासुर सामी भलउ, समरथ साहिब पास, देव 'दयाकर दारिद्रहर, नीलवरण तनु जास।
सरसति भगवती पय नमी, माँगी वचन विलास,
करजोड़ी सहि गुरु तणां, प्रण, चरण उल्हास । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ११९
१२४ (प्र०सं०)। २. वही भाग ३, पृ० ११८० (प्र०सं०)।
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