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गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
पार्श्वनाथ नो छंद अथवा स्तोत्र या स्तवन । यह स्तवन ३२ कड़ी का है और इसका रचनाकाल सं० १७१२ है । रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है -
गुर्जर
जनपद
राजे, त्रिभुवन ठकुराई
वामासुत देखि बहु
छाजे,
पायो ।
संगे ।
सकलार्थ समीहित देहि विभो । हर्षरुचि विजयाय मुदा,
तप लब्धरुचि सुखदाय सदा ।
महे
इम भाव भले जिनवर गायो,
रवि मुनि शशि संवच्छर रंगे,
बुध हर्षरुचि
जय शंखपुराभिध पार्श्व प्रभो,
जयदेव सूरमाँ सुख
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तुझ
सुख
इसके मंगलाचरण में पार्श्वनाथ की वंदना है, यथा-जय जय जगनायक पार्श्व जिन, प्रणताखिल जिन शासन मंडन स्वामि जयो,
मानवदेव
तुम दरिसन देखी आनन्द
लब्धिरुचि की यह रचना प्राचीन छन्द संग्रह और संञ्झाय भाग ३ तथा अन्यत्र भी प्रकाशित है ।
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गतं ।
भयो । '
इनकी दूसरी कृति 'चंदराजा चौपाई' का रचनाकाल जैन गुर्जर कवियो के प्रथम संस्करण में १७०७ बताया गया था किन्तु नवीन संस्करण के सम्पादक इसे १७१७ बताते हैं । प्रथम संस्करण में देसाई ने इस रचना का लेखक विद्यारुचि ओर लब्धिरुचि को सहकर्ता बताया था । लब्धिरुचि विद्यारुचि के 'लघुबंधव' अर्थात् लघु गुरुभाई थे । नवीन संस्करण में इसका रचनाकाल सं० १७१७ फाल्गुन शुक्ल १३ गुरुवार बताया गया है । रचनाकाल का यह आधार जयंत कोठारी (सम्पादक नवीन संस्करण) ने विवेक रुचि ( विद्यारुचि) का संभावित कर्त्ता होना बताया है ।
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० २५३-२५४ ( न० सं० ) ।
२, वही भाग २ ० १५० और भाग ३ पू० ११९९ (प्र०सं० ) ।
चैत्य आदि
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