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________________ ४३६ गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पार्श्वनाथ नो छंद अथवा स्तोत्र या स्तवन । यह स्तवन ३२ कड़ी का है और इसका रचनाकाल सं० १७१२ है । रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है - गुर्जर जनपद राजे, त्रिभुवन ठकुराई वामासुत देखि बहु छाजे, पायो । संगे । सकलार्थ समीहित देहि विभो । हर्षरुचि विजयाय मुदा, तप लब्धरुचि सुखदाय सदा । महे इम भाव भले जिनवर गायो, रवि मुनि शशि संवच्छर रंगे, बुध हर्षरुचि जय शंखपुराभिध पार्श्व प्रभो, जयदेव सूरमाँ सुख Jain Education International तुझ सुख इसके मंगलाचरण में पार्श्वनाथ की वंदना है, यथा-जय जय जगनायक पार्श्व जिन, प्रणताखिल जिन शासन मंडन स्वामि जयो, मानवदेव तुम दरिसन देखी आनन्द लब्धिरुचि की यह रचना प्राचीन छन्द संग्रह और संञ्झाय भाग ३ तथा अन्यत्र भी प्रकाशित है । For Private & Personal Use Only गतं । भयो । ' इनकी दूसरी कृति 'चंदराजा चौपाई' का रचनाकाल जैन गुर्जर कवियो के प्रथम संस्करण में १७०७ बताया गया था किन्तु नवीन संस्करण के सम्पादक इसे १७१७ बताते हैं । प्रथम संस्करण में देसाई ने इस रचना का लेखक विद्यारुचि ओर लब्धिरुचि को सहकर्ता बताया था । लब्धिरुचि विद्यारुचि के 'लघुबंधव' अर्थात् लघु गुरुभाई थे । नवीन संस्करण में इसका रचनाकाल सं० १७१७ फाल्गुन शुक्ल १३ गुरुवार बताया गया है । रचनाकाल का यह आधार जयंत कोठारी (सम्पादक नवीन संस्करण) ने विवेक रुचि ( विद्यारुचि) का संभावित कर्त्ता होना बताया है । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० २५३-२५४ ( न० सं० ) । २, वही भाग २ ० १५० और भाग ३ पू० ११९९ (प्र०सं० ) । चैत्य आदि www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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