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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गया है
संवत सतर चौसठा वरसे, कार्तिक सुद सुषदाया रे,
बीज गुरु दिन पूरण कीधो, सारद सुगुरु पसाया रे | सूरत चैत्य परिपाटी ( ८१ कड़ी सं० १७९३, मागसर कृष्ण १० गुरु, सूरत ) आदि-प्रणमी पास जिणंद ना, चरण कमल चितलाय,
रचना चैत्य प्रवाड नी, रचसू सुगुरु पसाय । रचनाकाल
संवत सतर त्राणुआ वरसे, रही सूरत चौमासे जी,
मागसिर वदि दसमी गुरुवारे, रचीउं स्तवन उल्लासे जी।' यह रचना साह लालचंद के आग्रह पर की गई, इसमें सूरत बन्दरगाह के सभी जिनविहारों का वर्णन किया गया है। यह प्रकाशित रचना है। ___ इनकी अधिक प्रसिद्ध रचना 'शिवचंद सूरिरास' है। यह रास ७ ढालों में रचित है और इसका रचनाकाल सं०१७९५ आसो शुक्ल ५, गुरुवार तथा स्थान राजनगर बताया गया है। शिवचंद सूरि का जन्म मरुधर देशीय भिन्नमाल निवासी ओसवाल गोत्रीय सा पदमसी की पत्नी पद्मा की कुक्षि से हुआ था। जिनधर्म सूरि के उपदेश से १३ वर्ष की वय में वैराग्य हआ और सं० १७६३ में दीक्षा ली। जिनधर्म ने १७७६ में इन्हें गच्छनायक की पदवी प्रदान की और उदयपुर में महोत्सव मनाया गया। इन्होंने सं० १७७८ में क्रियोद्धार किया; अनेक तीर्थों को यात्रायें की। इनके खिलाफ यवनशासकों के कान भरे गये और उन लोगों ने इन्हें यातनायें भी दीं। सं० १७९४ में हीरसागर को पट्टधर बनाकर इन्होंने देहोत्सर्ग किया। इन्हीं हीरसागर के आग्रह पर सं० १७९५ में यह रास लाधासाह ने राजनगर में लिखा। इसका आदि इन पंक्तियों से हुआ है--
सासन नायक समरीये, श्री वर्द्धमान जिनचंद,
प्रणमुं तेहना पदयुगल, जिम लहु परमाणंद । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० १९८-२०१
(न०सं०)। २. ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह-पृ० ३२१-३३२ तक ।
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