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(पं०) लाखो
(५०) लाखो-इनकी एक रचना 'पार्श्वनाथ चौपाई' का उल्लेख मिलता है जो सं० १७३४ में रचित है। इसलिए १७वीं शताब्दी के लाखों से इन्हें भिन्न होना चाहिए।' ये वणहट के ग्रामवासी थे तथा औरंगजेब के समकालीन थे। चौपाई में २६८ पद्य हैं। रचनाकाल
संवत सतर से चौतीस, कार्तिक शुक्ल पक्ष सुभदीस । अन्त--- कर्मक्षय कारण शुभहेत, पार्श्वनाथ चौपइ सचेत ।
पण्डित लाखो लाख सभाव, ......
यह रचना चौपाई छंद में रचित है। इसकी भाषा सरस एवं प्रसादगुण सम्पन्न है। इसमें पार्श्वनाथ की जीवन चरित्र वर्णित है।
लब्धि--आपकी गुरु परंपरा अज्ञात है। आपने १८१० से पूर्व मनक महामुनि संञ्झाय नामक एक छोटी रचना (१० कड़ी) की है अतः रचना १.वीं शती की ही मानी गई है। इसके आरम्भ की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं -
नमो नमो मनक महामुनि बाल थकी व्रत लीधो रे,
प्रेम पिता स्यु परठी ओ स्यु मोह न कीधो रे । इसकी अंतिम पंक्तियाँ निम्नवत् हैं ---
लब्धि कहे भविजन तमे म करो मोह विकारो रे,
वो तमे मनक तणी परे पामो सद्गति चारो रे। यह मोटु संञ्झायमाला संग्रह में तथा अन्यत्र से भी प्रकाशित रचना है। भाषा के आधार पर रचना स्थान गुर्जर प्रदेश प्रतीत होता है।
लब्धिरुचि --आप तपागच्छीय हर्षरुचि के शिष्य थे। इनके दो रचनाओं की सूचना उपलब्ध है, प्रथम 'चंदराजा चौपाई' और दूसरी १. सम्पादक कस्तचन्द कासलीवाल --राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की
ग्रंथसूची भाग ४, पृ० ३७-३८ और ५४ तथा भाग ४, पृ० ४४८-४४९ २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ४२१-४२२
(न० सं.)।
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