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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कवि इन्हीं पद्मरंग का शिष्य था। श्री अगरचन्द नाहटा ने बताया है कि इन्होंने सं० १७११ में 'मूलदेव चौपई' की रचना तोहर नामक स्थान में की और श्रीपाल चौपई सं० १७२५, बीकानेर में लिखी। इन्होंने दस पच्चखाण स्तव, सम्मेत शिखर स्तव, आदिनाथ स्तव के अलावा रामविनोद, वैद्यविनोद नामक वैद्यक ग्रंथ तथा सामुद्रिक भाषा नामक सामुद्रिक शास्त्र संबंधी ग्रन्थ भी लिखा' अर्थात् ये भी अपने गुरुओं के समान काव्य, शास्त्र, वैद्यक और ज्योतिष आदि के पारंगत विद्वान् तथा लेखक थे।
मिश्रबन्धु विनोद में इनका नाम 'रामचन्द्र साकी बनारस वाले' दिया गया है ।२ किन्तु बनारस के नहीं थे। रामविनोद चौपई में इन्होंने अपने को मिश्र केशवदास सुत तथा अपना नाम मिश्र रामचन्द्र बताया है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा के खोज विवरण में इन्हें जैनेतर बताया गया है ।
परदुख भंजण के लिये, कीयो मिश्र रामचन्द्र,
ग्रन्थ रच्यो हे सुखदा, जांलगिधू रविचंद । इति मिश्र केशवदास सुत रामचन्द्रेण विरचिते श्री रामविनोदे... कवि ने स्वयं गुरुपरंपरा दी है, यथा
कोटिगच्छ खरतर परधान श्री जिनसिंह सूरि राजान,
रंजे जिण अकबर साह सलेम, करामात दिखलावै अम । अतः वह अवश्य ही जैन होगा। पर शंकास्पद बातें भी कई हैं, इसमें तीर्थंकरों, गणधरों की नहीं बल्कि 'गवरीपुत्र गणेश' की वंदना है। धन्वन्तरि के चरणयुग को प्रणाम करके यह वैद्यक ग्रन्थ प्रारंभ किया गया है । कवि ने रचनाकाल १७२० मागसर शुक्ल १३ बुद्धवार बताया है, यथा
गगनं पाणि फुनि द्वीप शशि, हिमरितु मगसिर मास र शुक्ल पक्ष तेरसि दिने, बुधवार जिन जास।
रचना शाह औरंगजेब के समय की गई और उसके शासन सुव्यवस्था की प्रशंसा भी की गई है, यथा - १. अगरचन्द नाहटा - परंपरा पृ० १०६ । २. मिश्रबन्धु--मिश्रबन्धु विनोद, भाग २ पृ० ४६६ । ३. काशी नागरी प्रचारिणी सभा - खोज विवरण भाग ८ १० ४६५ ।
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