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म गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
पूर्ण की थी। जिसके अंत में विजयदान के पश्चात् हीरविजय द्वारा अकबर प्रतिबोध का उल्लेख है, तत्पश्चात् गुरुपरंपरा में विजयसेन, विजयतिलक, विजयानंद, विमलहर्ष, प्रीतिविजय और पुण्यविजय का उल्लेख किया गया है । इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है
संयम भेद लोचन नई जलधि, अ संवत्सर जांणो जी, भाद्रपद सित नवमि मूल रिषह, शशि धनरासि बषाणो जी । श्रीपाल मणां सुंदरि नो, रास रच्यो गुण जाणी जी, उत्तम जनना गुण बोलतइ, जग सोभा विरचांणी जी । रंगभर अ रास भणीनई, जिह्वा पवित्र कहेयो जी, लक्ष्मीविजय कहि भविका जन, शिवरमणी वरेयो जी । ' इस रास में श्रीपाल और मयणा (मैना ) सुन्दरी की प्रेमकथा को जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांतों के दृष्टांत स्वरूप दिया गया है। रचना यद्यपि सामान्य कोटि की है किंतु कथा की मनोरंजकता के कारण उपदेश अधिक शुष्क नहीं लगता ।
लक्ष्मी विजय II - तपागच्छ के यशस्वी साधु गंगविजय की परंपरा में मेघविजय आपके प्रगुरु और उनके शिष्य भाणविजय आपके गुरु थे । लक्ष्मी विजय ने सं० १७९९ पौष शुक्ल तृतीया को अपनी गद्यकृति शांतिनाथ चरित्र बालावबोध को पूर्ण किया । रचना में उपर्युक्त गुरुपरंपरा दी गई है और रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है-fafa ग्रह विधणाथोधिभिः समिते धवल तृतीयां लिखितमखिलमेतत्पुस्तकें मयि विहितकृपं पंडितै मंदबुद्धये । २ लेखक की गद्यभाषा का नमूना नहीं प्राप्त हो पाया ।
लक्ष्मीविनय - खरतरगच्छीय विनयचंद सूरि की लघुखरतर शाखान्तर्गत सागरचंदसूरि > ज्ञानप्रमोद > विशाल कीर्ति > हे महर्ष > अमर और रामचंद>अभयमाणिक्य के शिष्य थे । इन्होंने अभयकुमार १ मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० २५१-२५२ (प्र०सं०) और वही भाग ४, पृ० ३७७ - ३७८ ( न०सं० ) । २. वही, भाग २, पृ० ५९३, भाग ३, पृ० १६४६-४७ (प्र०सं०) और वही भाग ५, पृ० ३६४-३६५ (न०सं० ) ।
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