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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ताके वचन विचारि कै, कीने भाषा छन्द,
आतमलाभ निहारि मनि, आचारज लक्ष्मीचंद । इससे स्पष्ट विदित होता है कि यह ग्रंथ लेखक ने शुभचंद्र के ग्रन्थ ज्ञानार्णव के आधार पर रचा है। यह पद्यबद्ध भाषानुवाद है। बह रचना इन्होंने फतहपुर के सरदार अलफखाँ के दीवान ताराचन्द के आग्रह पर किया था। एक जगह इन्होंने अपना नाम लब्धिविमल भी दिया है, यथा--
लब्धिविमल पाइ मनुष की गति नीकी ताहि,
फल लीनौं राचौं ध्यान के विधान सौं। सेठ कूचा दिल्ली के ज्ञान भण्डार में सुरक्षित ज्ञानार्णव ग्रन्थ का लेखक लब्धिविमल गणि को ही बताया गया है । यह एक आध्यात्मिक ज्ञानरस पूर्ण कृति है, इससे जीवों का उपकार होगा। इसका प्रारंभिक छंद देखिए
ललितचिह्न पद कलित मिलत निरषत जिन लंपति, हरषित मुनिजन होय धोय कलिमल गुण जंपति। दृढ़ आसन थिति वासु जासु उज्वल जग कीरति, प्रतीहार ज अष्ट नष्ट गत रोग न बीरति । अजरामर एकल अछल जग अनुपम अनगित शिवकरन,
इन्द्रादिक वंदित चरण युग जय जय जिन अशरण शरण । इसकी भाषा प्रसादगुण सम्पन्न और छंद प्रवाहपूर्ण है। श्री कामता प्रसाद जैन ने इन्हें १८वीं शती का कवि बताया है किन्तु रचनाकाल स्पष्ट रूप से निश्चित नहीं किया है।'
लक्ष्मीदास-आपकी दो रचनाओं का उल्लेख दो-तीन विद्वानों ने किया है एक 'श्रेणिक चरित्र' और दूसरा 'यशोधर चरित्र' का। इनका विवरण प्रस्तुत है । श्रेणिक चरित्र (५४ ढाल, सं० १७३३, ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी, में श्रेणिक (बिम्बसार) का चरित्र प्रधान रूप से चित्रित किया गया है । राजा श्रेणिक अंतिम तीर्थङ्कर महावीर की समवशरण सभा के प्रधान श्रोता थे इसलिए जैन साहित्य में इनकी विशेष चर्चा मिलती है। १. श्री कामताप्रसाद जैन-हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ०
१५६.१५९ ।
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