________________
रामचन्द्र
४०५
मरदानौ अरु महाबली अवरंग साहि नरंद,
तास राज मैं हर्ष सुं, रच्यो शास्त्र आनंद । यह रचना खुरासांन देशान्तर्गत बन्नू प्रदेश के सक्की नामक स्थान में की गई थी शायद इसीलिए मिश्र बन्धुओं ने इनका उपनाम 'साकी' समझ लिया हो। पंक्तियाँ इस प्रकार है--
उत्तर दिसि खुरसांन मैं, बानू देस प्रधान,
सजलभूमि रै सर्वदा, सक्की सहर सुभथान ।' इनके मूल स्थान का निश्चय नहीं हो सका है, रायबहादुर हीरा. लाल कटनी ने इनकी भाषा के आधार पर इन्हें राजस्थानी कहा है और नाहटा जी भी ऐसा ही मानते हैं । यह वैद्यक ग्रंथ है, जैसा स्वयं कवि कहता है
श्री धन्वंतर चरण युग प्रणमु धरी आणंद; रोग नस जसू नाम थी, सब जन को सूखकंद । विविध शास्त्र देखी करी, सुखम करु अधिकार,
राम विनोदह ग्रंथ यहु, सकल जीव सुखकार । इसमें एक जगह रचनाकाल 'संवत सोलह से वीसा' भी दिया हुआ है किन्तु वह पाठ अशुद्ध प्रतीत होता है, रचना औरंगजेब के शासन काल की है अतः सं० १७२० की ही हो सकती है। __'रामविनोद स्वोपज्ञ हिन्दी टीका' भी इनकी लिखी बताई गई है किन्तु रचनाकाल सं० १७१९ माघ शुक्ल १३ बुद्ध दिया है जो सही नहीं हो सकता क्योंकि यदि मूल रचना १७२० की है तो टीका १७१९ की कैसे हो सकती है । इसका आदि देखिये --
अथ रामविनोद ग्रंथ वचनिका वंध वार्ता लिख्यते । अथ प्रथम श्री गणेश जी की स्तुति लिखिये है । कैसे हैं गणेश जी, ऋद्धि सिद्धि के देणहार हैं। ___ अन्त-श्री कोटिकगण श्री खरतरगच्छे श्री जिनसिंह सूरि भट्टारक कैसे हु अकबर पातिसाह कु साह सलेम जहांगीर तिनहू ने जिनसिंह सरि भट्टारक कुं आपके हाथ ठीक दिया तखतं वैणय समातिक हुई तिसके चेला पद्मकीर्ति हुए। माहर वैद्यविद्या में निपुण १. डा० प्रेमसागर जैन--हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, पृ० २४२-२४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org