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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भये । तिसके पाट पद्मरंग जी हुआ तिसका चेला रामचन्द्र हुआ तिसने सं० १७१९ मृगसिर सुदि तेरस बुद्धिवार के दिन यह ग्रन्थ टीका पूरण किया। वैद्यक सम्बन्धी एक अन्य ग्रंथ 'नाड़ी परीक्षा' भी आपने लिखा है।' जिसकी प्रारम्भिक पंक्तियां इस प्रकार हैं--
सुभमति सरसति समरीय, शुद्ध चित्त हित आन;
प्रगट परीक्षा जीवनी, लहीयो चतुर सुजाण । १३ गाथा की एक छोटी रचना 'मान परिमाण' भी आपने की है। वैद्यक सम्बन्धी एक अन्य विस्तृत रचना आपकी उपलब्ध है जिसे 'सारंगधर भाषा' अथवा वैद्यविनोद (वैद्यक) कहा गया है, यह रचना सं० १७२६ वैशाख १५ भरोट में की गई थी। कवि ने लिखा है--
विविध चिकित्सा रोग की करी सुगम हित आंणि, वैद्यविनोद इण नाम धरि, यामै कीयो बखाण । सारंगधरभाषा कीयौ, वैद्यविनोद रसाल भेद ज इणकै सुणत ही, पंडित होइ सुचाल । पहिली कीनौ रामविनोद, व्याधि निकंदण करण-प्रमोद,
वैद्यविनोद यह दूजा कीया, सजन देखि खुसी होइ रहीया। इसमें भी ऊपर दी गई गुरुपरंपरा बताई गई है। रचनाकाल इस प्रकार बताया है.
रस दृग सायर शशि भयौ रितु वसंत वैशाख, पूरणिमा शुभ तिथि भली, ग्रन्थ समाप्ति इह भाख । साहि न साहिपति राजतो औरंगजेब नरिंद,
तास राज मै से रच्यो, भलो ग्रंथ सुखकंद । आपने सामुद्रिक भाषा की रचना सं० १७२२ माघ कृष्ण ६ को मेहरा में की जो पजाब में वितस्ता नदी के किनारे एक सुन्दर नगर था। आपने काव्य संबंधी ग्रन्थोंका प्रणयन किया है। जिनमें दो चरित संबंधी चौपाई है और तीन स्तवन हैं। स्तवन हैं--दस पच्चखाण स्तवन, समेत शिखर स्तवन और आदिनाथ स्तवन । चरित काव्यों में मूलदेव चौपई और श्रीपाल चौपई का पता चलता है। मूलदेव चौपई सं० १७११ कार्तिक नवहट में जिनचंद्र सूरि के राज्य में लिखी गई। १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० १७२
(न०सं०)।
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