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इस ग्रंथ का आधार ग्रंथ शीलतरंगिणी है, यथा-शील तरंगिणी ग्रन्थ थकी ओ चरित्र रच्युं सुविशाल जी, भविजन श्रोताजन ने हेते, अह संबंध रसाल जी ।
रचनाकाल-
कधी रास ती परि रचना, गुण रस संजम वर्षे जी, सुदि अकादशी सुरगुरु दिवसे पत्तन माहे हर्षे जी ।
चन्द राजा रास अथवा चन्द्र चरित्र ( ४ खण्ड सं० १७८३ पोष शुक्ल ५, शनिवार, राजनगर )
आदि
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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद इतिहांस
प्रथम धराधव तीम प्रथम, तिर्थङ्कर आदेय, प्रथम जिणंद दिणंद सम, नमो नमो नामेय ।
इसमें चन्द राजा के उच्च शीलगुण का वर्णन किया गया है, कवि ने स्वयं लिखा है
चन्द नरिंद तणो रचुं सीयल गुणें सुचरित्र, श्रोता श्रतिभूषण निपुण, परम धरम सुपवित्र । मधुर कथा रचना मधुर वक्ता मधुर तिम होय, मधुर ओ तो हो मधुरता हुई जो श्रोता कोय |
अर्थात् मधुर कथा, मधुर रचना, मधुर वक्ता तभी माधुर्य प्रदान कर सकते हैं जब कोई सहृदय श्रोता हो । सभी श्रेष्ठ कवियों को सहृदय श्रोता की अपेक्षा रही है । विजयसेन द्वारा दिल्लीपति सम्राट् अकबर के प्रतिबोधन का उल्लेख इसमें मिलता है । रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है
कीधो चोथो उल्लास संपूरण, गुण वसु संयम वर्षे जी, पोष मास सित पंचम दिवसे, तरणि ज वारे हर्षे जी । राजनगर चोमासु करीने, गायो चंद चरित्र जी, श्रवण देइ श्रोता सांभलशे, याशे तेह पवित्र जी । अन्तिम कलश
अ चरित्र सागर हुं ती निरखी यत्न सुरगिरि आदर्यो, चंद नृप संबंध राशि जिम अति ही प्रभाकर उद्धर्यो । श्रीविजयक्षेम सुरिंद राज्ये करी परम गुरु वंदना, कवि रूप सेवक मोहन विजये, वर्णव्या गुण चंदना | " १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० १३७-१५७ ( न० सं० ) ।
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