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यशोविजय
३८३ इनकी भाषा के नमूने द्वितीय खंड में दे चुका हूँ इसलिए पुनरुक्ति अनावश्यक है। इन्होंने अपने समय के कई लेखकों को प्रेरणा दी। इनके समकालीन लेखकों में विनयविजय, सत्यविजय और मेघविजय आदि प्रमुख हैं। विनय विजय और यशोविजय के सहलेखन से प्रसिद्ध रचना श्रीपाल रास की चर्चा पहले हो चुकी है। इसकी कुछ पंक्तियों को उद्धृत करके यह प्रकरण पूर्ण कर रहा हूँ
डेहरो गाय तणे गले, खटके जेम कुकट्ठ, मरख सरसी गोण्डी पगपग हियडे हट्ठ । जो रूठो गुणवंत ने, तो देजो दुःख पोठि,
दैव न देजे एक तु, साथ गमारा गोठि । गुणवंत को गंवार गोष्ठी में रहने की विवशता से बढ़कर दुःख कोई नहीं हो सकता--
"शिरसि मां लिख मां लिख मां लिख ।" हे दुर्दैव और जो भी चाहे दुख तू लिख दे पर भाग्य में दुष्ट संग मत लिखना।
रंग प्रमोद -खरतरगच्छीय जिनचन्द्रसूरि>पुण्यप्रधान>सुमतिसागर>ज्ञानचन्द के ये शिष्य थे। इन्होंने चंपक चौपाई' की रचना सं० १७१५ वैशाख कृष्ण तृतीया को मुलतान जैसे दूरस्थ प्रदेश में पूर्ण की। इनकी सूचना देसाई और नाहटा दोनों ने दी है किन्तु इसका उद्धरण या अन्य विवरण दोनों में से किसी ने भी नहीं दिया है।
रंगविनयगणि.. आप खरतरगच्छीय प्रसिद्ध साधु जिनरंग के शिष्य थे। आपका व्यक्तिगत इतिवृत्त ज्ञात नहीं हो सका पर आपकी रचना मंगलकलश महामुनि चतुष्पदी का विवरण और उद्धरण उपलब्ध हुआ है। यह मरुगुर्जर (राजस्थानी हिन्दी मिश्रित) भाषा में रचित पद्यबद्ध चरित्र काव्य है। इसकी रचना कवि ने सं० १७१४ श्रावण शुक्ल एकादशी को पूर्ण की। इसका आदि -
एहवा मुनिवर निसदिन गाइयइ, मन सुधि ध्यान लगाई;
पुण्य पुरुषणा गुण घुणतां छवां पातल दूरि पलाई। १. (क) मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ०
१२०९ (प्र०सं०) और भाग ४ पृ० २७४ (न०सं०) (ख) अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० १०७ ।
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