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रघुनाथ
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तृतीय भाग में नाम का सुधार करके उसे रघुपति कर दिया था । ' जैन गुर्जर कवियो के नवीन संस्करण में रघुनाथ नाम का कोई कवि नहीं है बल्कि रघुपति रूपवल्लभ' नामक कवि की वही रचनाएँ बताई गई हैं जो पहले देसाई ने रघुनाथ की बताई थी । अतः यह निश्चय है कि रघुनाथ का वास्तविक नाम रघुपति रूपवल्लभ है और वे खरतरगच्छीय विद्यानिधान के शिष्य थे । श्री अगरचन्द नाहटा ने इनका नाम रूधपति दिया है । क्योंकि आपने अपनी रचना 'गौडी पार्श्वस्तव' में यही नाम दिया है । इसके साथ इनकी १४ रचनाओं की सूची नाहटा ने दी हैं जो आगे यथावत् दी जा रही है
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नंदिखेण चौपई सं० १८०३ केसरदेसर, श्रीपाल चौपई सं० १८०६ घड़सीसर, रत्नपाल चौपई सं० १८१४, कालू, सुभद्रा चौपई सं० १८२५ तोलियासर, जैनसार बावनी सं० १८०२, नापासर, छप्पय बावनी १८२५ तोलियासर, कुंडलिया बावनी सं० १८४८, करणी छन्द, गौड़ी छन्द, जिनदत्त सूरि छन्द, सुगुण बत्तीसी, उपदेश बत्तीसी, उपदेश रसाल बत्तीसी, उपदेश पच्चीसी । गद्य में भी आपने रचना की है । 'दुरिभरस्तोत्र बालावबोध की रचना आपने सं० १८१३ में की । प्राप्त रचनाओं द्वारा आपके सुकवि होने का पता चलता है । सं० १७८८ सें १८४८ तक आपका साहित्य निर्माण काल है । आपकी प्रारम्भिक रचनाएँ विमल जिनस्तवन सं० १७८८ नाकोड़ा एवं गौड़ी स्तवन सं० १७९२ में रचित है । इसलिए आपका प्रारम्भिक रचनाकाल १८वीं शताब्दी में पड़ने के कारण आपकी चर्चा इस खण्ड में की जा रही है अन्यथा आपकी अधिकांश बड़ी बड़ी रचनाएँ १९वीं शती के पूर्वार्द्ध की हैं । आप इस प्रकार दोनों शताब्दियों में रचनाशील रहे ।
आपकी प्रारम्भिक रचनाओं में तीन गौड़ी पार्श्वनाथ स्तव की रचना सं० १७९२ चैत्र शुक्ल १५, गुरुवार को हुई । इन तीनों के आदि और अन्त की पंक्तियाँ आगे क्रमशः दी जा रही हैं
प्रथम स्तव - - आदि
धींग धवल गोड़ी धणीजीलो, परता पूरणहार हो,
१. जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १२४ - १२५, ३२५-३२८ और पृ० १४५५ ( प्र०सं० ) ।
२. वही भाग ५, पृ० ३४२-३४७ ( न०सं० ) । ३. अगरचन्द नाहटा - परंपरा पृ० १०५ । ४. वही, परंपरा पृ० १०५ ।
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