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मोहन विजय
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सुरक्षित हैं । यह कृति सवाई भाई रायचन्द, अहमदाबाद ने प्रकाशित किया है ।
मानतुरंग मानवती रास (४७ ढाल १०१५ कड़ी, सं० १७६० अधिक मास शुक्ल पक्ष ८, बुधवार, पाटण)
इसमें मृषावाद का परिहार अर्थात् असत्यभाषण से बचने का संदेश दिया गया है । इसका प्रारंभ इस पंक्तियों से हुआ है
ऋषभ जिणंद पदांबुजे मन मधुकर करि लीन, आगम गुण सौरम्यवर, अति आदर थी कीन । थानपात्र सम जिनवरु, तारण भवनिधि तोय, आप तर्या तारे अवर, तेहने प्रणिपति होय ।
इसके पश्चात् सरस्वती और गुरु की स्तुति की गई है । मृषावाद के बारे में कवि ने लिखा है
मृषावाद व्रत द्वितीय ओ, मृषा तणो परिहार; सत्यवचन आराधिये, तो वरिये सिवनार । फूट मृषा तजतां थका, धरिये इम प्रतिबंध; सत्यवचन ऊपर सुणो मानवती सम्बन्ध | रचनाकाल - पुरण काय मुनिचंद्र सुवर्षे (१७६० ) वृद्धिमास शुद्ध पक्षे हे; अष्टमी कर्म्मवारी उदयिक, सौम्यवार सुप्रत्यक्ष हे । '
यह रचना दुर्गादास राठौर के राज्यकाल में की गई थी, यथाअणहिलपुर पाटण मां रहीने, मानवती गुण गाया है, दुर्गादास राठौड़ ने राज्ये, आणंद अधिक उमाया है ।
इसकी भी पचासों प्रतियों की सूचना श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने दी है । इसे भीमसी माणेक और सवाई भाई रायचंद ने प्रकाशित किया है ।
पुण्यपाल गुणसुंदरी रास ( ७५७ कड़ी सं० १७६३ शुक्ल ११, पाटण)
आदि -- सकल सिद्धि दायक सदा, गुणनिधि गोड़ी पासु; अश्वसेन कुल दिनमणि, नित्यानन्द प्रकाश ।
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० १३७० १५७ (प्र०सं०) ।
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