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शोनन्द
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यशोलाभ खरतरगच्छ की सागर शाखा के समयकलश > सुखनिधान > गुणसेन के शिष्य थे । आपकी तीन रचनाओं का उल्लेख मिलता है - सनत्कुमार चौपाई, अमरदत्त चित्रानन्द रास और धर्मसेन चौपाई | इनका विवरण - उद्धरण आगे दिया जा रहा है ।
धर्मसेन रास (३६ ढाल, सं० १७४० नापासर)
(३०) ? ज्येष्ठ शुक्ल १३,
आदि- चरण कमल श्री पास ना, प्रणमुं बे कर जोड़ि सेवक जास प्रसाद थी, शीघ्र लहै सुख कोडि ।
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इसमें दानधर्म का माहात्म्य ऋषि धर्मसेन के चरित्र को दृष्टान्त स्वरूप प्रस्तुत करके दर्शाया गया है, यथा-
दान धरम श्रीकार सहू में, आदरि जिण मन मैं बे, श्री धर्मसेन रिषीवर राया, प्रणमु उठी नित पाया बे ।
रचनाकाल
संवत सतरह से चालीसे, जेठ सुदी तेरस दिवसे बे, सुपास तो दिक्षा दिन उच्छव, सुरनर करें महोत्सव बे । नापासर जिन भुवन विराजे, अजित शांति जिनराजे बे, खरतरगच्छ सुरतरु सम सोहै, दान अमृत फल मोहे बे । '
आगे सागर शाखा के समयकलश, सुखनिधान, गुणसेन का सादर स्मरण किया गया है । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ आगे दी जा रही हैं । यशोलाभ साधु गुण गावे मन वंछित फल पावे बे, सकल संघ ने आनन्दकारी, मंगलमाल जयकारी बे ।
अमरदत्त मित्रानंद रास का रचनाकाल नहीं मालूम हो सका, इसके प्रारम्भ की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
स्वस्ति श्री जिनवर सकल, चरण नमुँ चित लाय, मनवंछित फलइ मन तणा, थिर रिद्धि संपति थाय ।
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कडुवा फल कसाय ना, परतिख प्राणी पाय, इम जाणी जिण उपदिस्यइ, सेव्या होइ संताप |
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कवियो भाग ५. पृ० २४-२६
( न०सं० ) ।
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