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मेघविजय
मातृका प्रसाद सं० १७४७, चंदप्रभा व्याकरण १७५७, सप्तसंधान महाकाव्य १७६०, शांतिनाथ चरित्र, तत्व गीता, धर्ममंजूषा, युक्ति प्रबोध नाटक, हैमचन्द्रिका, मेघदूत समस्या लेख और भक्तामर स्तोत्र वृत्ति इत्यादि । पुरानी हिन्दी में भी आपने कई सुंदर अच्छी कृतियाँ प्रस्तुत की जिनमें विजयदेव निर्वाणरास, श्री पार्श्वनाथ नाममाला आदि रचनाएँ उत्कृष्ट कोटि की हैं और प्रकाशित भी हैं । इनके अतिरिक्त आपने कई स्तवन, संञ्झाय और चौबीसी आदि भी लिखा है जिनमें से कुछ प्रमुख कृतियों का परिचय और नमूने के लिए आवश्यक उद्धरण दिए जा रहे हैं ।
विजयदेव निर्वाण रास ( विजयदेव का स्वर्गवास सं० १७१३ में हुआ था अतः यह रचना उसी समय की होगी ।) इसका आदि इस प्रकार है
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जिनवर नवरस रंगवर, प्रवचन वचन वसंत । समरी अमरी सरसती, सज्जन जननी संत । श्री गुरु कृपा प्रसाद थी, वचन लही सविलास, श्री विजयदेव सूरीशना, गाइये गुण गण रास । अंत-तपगच्छराया सहु सुहाया, श्री जिनशासन दिनकरो, श्री विजयदेव सूरीश साहिब, श्री गौतम सम गणधरो, जस पट्टदीपक विजयप्रभ सूरि राजा थे, कवि कृपाविजय सुशिष्य मेघे, सेवित हित सुखकाज अ । '
यह रचना जैन ऐ० रासमाला भाग १ और ऐ० संञ्झायमाला भाग १ में प्रकाशित है ।
श्री पार्श्वनाथ नाममाला (सं० १७२१, दीव वंदर) का प्रारम्भ इस प्रकार है
जिनवाणी आणी हिई, पुरिसादाणी पास, जांणी प्राणी मया करु, थुणस्यु निअ मनि वास ।
रचना की भाषा आलंकारिक है, अनुप्रास और यमक का नमूना देखिए
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० १८८
१८९ ।
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