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( गण ) मानविजय tri
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नय विचार ( अथवा सात नय नो ) रास - - यह रचना आवश्यकनियुक्ति पर आधारित है। इसमें हीरविजय, विजयसेन, विजयतिलक, विजयानंद और शांतिविजय का सादर नमन किया गया है ।
आदि-श्री गुरुचरण कमल अनुसरी, श्री श्रुतदेवी रीदय धरी,
तत्व रुचीनई बोधनकाज, करूं नयविवरण गुरुसाहाजि । सूत्रअर्थ सविनय संमति, संदरभित छइ श्री जिनमति, आवश्य नियुक्ति अश्यु, देखी कहिबा मन उल्लस्यु ।"
इसकी भाषा को कवि ने प्राकृत भाषा कहा है, प्राकृत शब्द का प्रयोग चलती और अपने समय की जन साधारण की भाषा है न कि महावीर कालीन प्राकृत भाषा से है ।
यथा - अह अनोपम चिंतामणि सम,
शास्त्र पट कथा लेइ जी, प्राकृत भाषा दोरे गूंथ्यो । यह जैन श्वे० हेरल्ड वैशाख १९७३ में प्रकाशित है । 'चौबीसी' के आदि में ऋषभ स्तवन
ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा, तुम दरिशण हुये परमाणंदा, अहनिशि ध्याऊं तुम दीदारा, महिर करीने करज्यो प्यारा ।
इसमें दीदार और महिर ( मेहर ) जैसे शब्द भी कवि की प्राकृत भाषा में सम्मिलित हैं । यह चौबीसी - बीसी संग्रह पृ० १७२ - १८८ पर प्रकाशित है ।
२४ जिन नमस्कार - इसमें पहले ऋषभ की वंदना करता हुआ तीसरे छंद में कवि विनता नगरी का उल्लेख करता है, यथा
विनता नगरी राजीओ ओ ऋषभलंछन वर पाय, युगला धर्म नीवारणो, मानविजय गुण गाय ।
सिद्धचक्र स्तवन (४ ढाल २५ कड़ी )
अंत - इह भवे सवि सुखसंपदा, परभवे सवि सूख थाइ, पंडित शांतिविजय तणो, कहे मानविजय उवझाय ।
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१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० ३५९-३६१
( न०सं० ) ।
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