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मनोहरदास अथवा मनोहर
दिन दिन आयु घटै है रे लाल, ज्यों अंजली को नीर मन मांहि ला रे । थिरता नहीं संसार मन माहि ला रे, सीष सुगुरु की मानिलै रे लाल । समकित स्यौं परच्यौ करो रे लाल, मिथ्या संगि निवारि मन मांहि ला रे ।
गुणठाणा गीत में १७ पद्य हैं जो परम चिदानन्द की भक्ति में लिखे गये हैं, एक पद की कुछ पंक्तियां नमूने के रूप में प्रस्तुत हैं
परम चिदानंद सम्पद पदधरा, अनंत गुणाकर शंकर शिवकरा । शुभचन्द्रसूरि पद कमल युगलई, मधुपव्रत मनोहर धरए, भणइत श्री वर्धमान ब्रह्म एह वाणि भवीयण सुखकर ए । '
मसिंह अथवा महेशमुनि - आपकी रचना अक्षर बत्तीसी का रचनाकाल सं० १७२५ है । इसका आदि इस प्रकार है
कका ते किरिया करी करम करऊं ते चूरि, किरिया बिण रे जीव डा, शिवनगरी हुई दूरि । रचनाकाल कवि ने स्वयं दिया है, यथा
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सतरह सइ पच्चीस संवत कीयो वखाण, उदयपुर उद्यम कीयो मुनि महिसिंह जाण ।
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इस पद्य से इनका नाम मह या महिसिंह ज्ञात होता है । इनका विवरण देते हुए मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने रचनाकाल सम्बन्धी पद्य का पाठ इस प्रकार लिखा है
सतरय सय पचीस भइ, संगत कीयउ सा वखाण, उदयपुर उद्यम कीउ, मुनि महेश पंडित जाण । इससे इनका नाम महेशमुनि मालूम पड़ता है ।
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१. डा० प्रेमसागर जैन - हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, पृ० २१९-२२४ २. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल --- राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की ग्रंथसूची, भाग ३, पृ० २५२ ।
३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० २३० (प्र०सं० ) और भाग ४, पृ० ३५८ ( न०सं० ) !
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