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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास महिमावर्धन--आप कुलवर्धन रि के शिष्य थे। आपने धनदत्त रास' की रचना सं० १७९६ ज्येष्ठ कृष्ण ५, मंगलवार को पूर्ण की।
___ महिमासूरि --आप आगमगच्छ के साधु थे। आपने 'चैत्यपरिपाटी' की रचना सं० १७२२ श्रावण ३, गुरुवार को ५ ढालों में पूर्ण की। आदि-- श्री वागीश्वरी वीनवं रे लो, कहिसुं गुणग्राम रे, साहेली
रथ मोटा मानीइ रे लो, जोयां ठामोठाम रे। साहेली प्रणमुं हं परमेसरु रे लो, राजनगर थी मांडि रे,
संख्या कहुं जिनबिंब नी रे लो, अंग थी आलसि छांडि रे । इन्होंने अहमदाबाद से मारवाड़ तक की तीर्थयात्रा करके जिनबिंबों की गणना की थी और उनकी संख्या १९०४२ बताई थी। यह रचना प्राचीन तीर्थमाला संग्रह पृ० ५७-६१ पर प्रकाशित है। इसकी अंतिम पंक्ति है--
काप्रेडी बेहु मंदिरि रे लाल, पंच्योत्तरी जगदीस रे । रचनाकाल इस प्रकार कहा है-- बावीशि श्रावण पखि त्रीज भली गुरुवार, गोडी मंडण ध्यान थी रिद्धि वृद्धि भंडार; श्री संघनी जयकार ।२
महिमासेन--खरतरगच्छीय शिवनिधान के शिष्य थे। आपने वच्छराज हंसराज चौपाई की रचना सं. १७७५, कोरडा में पूर्ण की। इनके सम्बन्ध में अन्य विवरण एवं उद्धरण उपलब्ध नहीं है । ३
महिमा हंस--आप खरतरगच्छ के साधु शांतिहर्ष के शिष्य थे । शान्तिहर्ष बोहरा गोत्रीय तिलोकचन्द्र एवं तारादे के पुत्र थे। आपने शत्रुजय माहात्म्य का भाषा चौपाई में रूपान्तरण किया है। इसके अलावा मृगापुत्र चौपाई, यशोधर रास, श्रीमती रास आदि कई १. जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ५८७ (प्र०म०) और भाग ५, पृ० ३५५
(न०सं०)। २. वही, भाग २, पृ० १९५-९६ (प्र० सं०) और भाग ४, पृ० ३१४-३१५
(न०सं०)। ३. वही, भाग ३, पृ० १४२३ (प्र०सं०) ।
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