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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वैशाख शुक्ल ५, सोमवार को लाहौर में हुई। इसके मंगलाचरण की प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखिए-- उदित उदोत जगिमग रह्या चित्रभानु,
__ असेई प्रताप आदि ऋषभ कहत हैं। ताको प्रतिबिम्ब देखि भगवान रूपलेखि,
वाहिं नमौ पाय पेखि मंगल वहति है । रचनाकाल--
संवत सतरह सै समै पैताले वैशाख, शुक्लपक्ष पंचमि दिने सोमवार है भाख । और ग्रन्थ सब मथन करि, भाषा कहौं वषान; काढ़ा औषधि चूणि गुटिं, प्रगट करै गुनमान ।
इनकी दूसरी रचना कवि प्रमोद रस (वैद्यक हिन्दी) सं० १७४६ कार्तिक शुक्ल २ की रचित है। इसमें कवि ने गुरुपरम्परा इस प्रकार बताई है--
खरतरगच्छ परसिद्ध जगि वाचक सुमतिमेरु, विनयमेरु पाठक प्रगट, कीयै दुष्ट जगजोर । ताको शिष्य मुनि मान जी, भयौ सबनि परसिद्ध,
गुरु प्रसाद के वचन तें, भाषा कीनी जनविद्ध । रचनाकाल--
संवत सतर छयाल शुभ कातिक सुदि तिथि दोज,
कवि प्रमोद रस नाम यह सर्व ग्रन्थनि को खोज । इसके आदि की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं--
प्रथम मंगल पद हरित दुरित नाद, विजित कमल मद तासौ चितलाइयइ । जाके नाम कर करम छिनही में होत नरम, जगत विख्यात धर्म तिनिहीं की गाइयइ। अश्वसेन वामा ताकौ अंगज प्रसिद्ध जगि, उरगलच्छन पग जिन पत पाइयइ । धर्मध्वज धर्मीरूप परमदयाल भूप, कहत मुमुक्षु मान असेही को ध्याइपइ ।
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