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महिमा हंस रचनाएँ की हैं। आपके बीकानेर पधारने पर जो महोत्सव हुआ था उसका वर्णन उनके शिष्य महिमाहंस ने एक गहूली नामक गीत में किया है जो ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में संग्रहीत है। इसी संग्रह में आपका 'जिनसमुद्र सूरि गीतम्' भी संकलित है। जिनसमुद्र सूरि हरराज और लखमादे के पुत्र थे तथा जिनचन्द्र सूरि के पट्टधर थे। इस गीत का प्रारम्भ इस पद्य से हुआ है--
सुधन दिन आज जिनसमुद्र सूरिंद आयो सूरिंद आयो; वड़ो गच्छराज सिरताज वर वड वखत, तखत सूरे ते मई अति सुख पायो ।' इसमें कुछ आठ छन्द हैं।
महिमाहर्ष --इनका भी एक गीत ऐतिहासिक रास संग्रह में 'जिन समुद्र सूरि गीतम्' शीर्षक से संकलित है । यह मात्र तीन कड़ी का है । इसकी दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं--
श्री जिनसमुद्र सूरीश्वर भेट्यो वेगड़गच्छ सिणगार ।
महिमाहर्ष कहें चिर प्रतपो, जिन शासन जयकार । इस गीत में वही परिचय है कि जिन समुद्र सूरि श्रीमाल गोत्रीय हरराज की भार्या लखमा दे की कुक्षि से पैदा हुए थे और जिनचन्द्र के पट्टधर थे। आपने अनेक स्थानों में विहार किया। उनके सूरत आगमन पर छत्तराज ने महोत्सव किया था, उसी का वर्णन इस गीत में महिमाहर्ष ने भी किया है। इस महोत्सव का वर्णन एक अन्य गीत में भाईदास ने किया है। रचना का समय १८वीं शताब्दी ही है किन्तु निश्चित तिथि अज्ञात है ।
महिमोदय या महिमा उदय--ये खरतरगच्छ के आचार्य जिनमाणिक्य सूरि>विनय समुद्र>गुणरत्न> रत्नविशाल>त्रिभुवनसेन> मतिहंस के शिष्य थे। इन्होंने अपनी रचना श्रीपाल रास (सं० १. ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह-जिन समुद्रसूरि गीतम् । २. ऐतिहासिक राससंग्रह-जिन समुद्रसूरि गीतम् । ३. अगरचन्द नाहटा–परम्परा, पृ० ९८ ।
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