________________
३५२
मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १७२२, मागसर शुक्ल १३, गुरुवार, जहानाबाद) में जो गुरुपरंपरा दी है उसके अन्तर्गत उपरोक्त गुरुओं यथा जिनदत्त, जिनकुशल, जिनमाणिक्य, जिनचंद, जिनसिंह, जिनराज, जिनरंग जिनचंद तक का उल्लेख करके पुनः जिनमाणिक्य से विनयसमुद्र आदि का व्यौरा सादर दिया है। इनके विद्यागुरु लब्धिविजय प्रतीत होते हैं क्योंकि सांबप्रद्युम्न रास की पुष्पिका से ऐसा स्पष्ट संकेत मिलता है। श्रीपाल रास का रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है ----
सतरे सइ बावीस वच्छरे, मनोहर मगसिर मास, तिथि तेरसि गुरुवार तणे दिने रचियो ओ में रास । आरंभो मे गढ़े भेसे रोझ में परिहरि ने प्रमाद,
नगर जहानावाद मांहे थयो पूरण सुगुरु प्रसाद । इसका प्रारम्भ इस प्रकार किया गया है--
पर उपगारी परम गुरु तारण तरण जिहाज, पद पहिले प्रणमुं मुदा जगनायक जिनराज । अकल अमूरति अलख गति शिवसुन्दर लयलीण, सिद्ध नमु सांचे मने, पद कीजे परवीण ।'
महेश--आपकी एक रचना 'नेमिचन्द्रिका सं० १७६१ का नामोल्लेख मात्र श्री उत्तामचंद कोठारी की सूची में है इसके द्वारा न तो लेखक पर और न उसकी रचना पर कोई विशेष प्रकाश पड़ता है। महिसिंह के साथ महेशमुनि की चर्चा की जा चुकी है। हो सकता है कि अक्षरबत्तीसी के रचयिता महेशमुनि या महिसिंह और नेमिचन्द्रिका के लेखक प्रस्तुत महेश एक ही व्यक्ति हों। इस सम्बन्ध में अभी छानबीन आवश्यक है; तत्पश्चात् ही कुछ निश्चित तौर पर कहा जा सकता है।
माणिक्य--आपकी रचना मांकण भास (८ कड़ी सं० १८१० से पूर्व) प्रकाशित हो चुकी है। इसका आदि इस प्रकार है -- १. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० ३१३
(न० सं०)। २. उत्तमचन्द कोठारी की सूची, प्राप्तिस्थान-पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org