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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सतरह से इक्यासिया पौष पाख तम लीन,
तिथि तेरह रविवार को शतक समापत कीन ।' इस असार संसार में जन्म-मृत्यु का चक्कर चलता ही रहता है। कवि कहता है---
काहू घर पुत्र जायौ काहू के वियोग आयौ, काहू रागरंग काहू रोआ रोई करी है। जहाँ मातु उगत उछाह गीत गान देखे, सांझ समै ताही थान हाय हाय परी है । ऐसी जग रीति की न देखि भयभीत होय, हा हा नर मूढ़ तेरी मति कौने हरी है । मनुष जनम पाय सोवत विहाय जाय
खोवत करोरन की एक एक घरी है। भूधरदास के काव्याभिव्यंजन का स्वर रीतिकालीन हिन्दी काव्य अभिव्यंजना के मेल में है जैसा भगवान नेमिनाथ की स्तुति की निम्न पंक्तियों से स्पष्ट होता हैबाल ब्रह्मचारी उग्रसेन की कुमारी जादौनाथ
से निकारी जन्मकादौं दुखरास तैं, भीम भव कानन में आनन सहाय स्वामी,
अहो नेमि नामी तकि आयौ तुम पास मै ।
भूधरविलास--यह उनकी अनेक रचनाओं का संग्रह ग्रंथ है। डॉ० पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल ने इन रचनाओं के बारे में लिखा है कि इनमें कुछ अनुवाद और कुछ स्वतंत्र रचनाएँ हैं । भाषा खड़ी बोली मिश्रित ब्रजभाषा है। कुछ गुजराती के शब्द भी हैं। यह संकलन जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता से प्रकाशित हुआ है। इस मिली जुली रचना में प्रमुख स्वर भक्ति का है। एक स्थान पर कवि अजितनाथ की प्रार्थना करता हुआ उनकी भक्ति माँगता है१. डा० प्रेमसागर जैन--हिन्दी भक्तिकाव्य और कवि पृ० ३३५-३४९ । २. सम्पादक डा० पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल---नागरी प्रचारिणी सभा, हस्त,
लिखित पुस्तकों की खोजरिपोर्ट चौदहवाँ त्रैवार्षिक विवरण ।
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